देश भर में चल रहे जल, जंगल, ज़मीन, अस्मिता और अधिकारों के संघर्षों पर सरकार लगाम कसना चाहती है: चितरंजन सिंह


भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा इंडियन सोशल ऐक्शन फोरम (इंसाफ) का विदेशी अनुदान पंजीकरण (एफसीआरए) अगले 180 दिनों के लिए रद्द किए जाने और बैंक खाता सील किए जाने कं मद्देनजर इंसाफ द्वारा प्रेस क्लब, नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित किया गया, प्रो. अचिन विनायक, सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी और इंसाफ के महासचिव चितरंजन सिंह ने संबोधित किया। इंसाफ देश भर में ज़मीनी आंदोलनों और संघर्षों से जुड़े 700 से ज्यादा संगठनों का एक नेटवर्क है। बाबरी विध्वंस के बाद इंसाफ को इसलिए खड़ा किया गया था ताकि देश में भूमंडलीकरण और साम्प्रदायिकता की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ तथा लोकतंत्र के पक्ष में अवाम के भीतर जागरूकता पैदा की जा सके। गृह मंत्रालय ने कारण यह बताया है कि सरकार के पास उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर उसे लगता है कि संस्था को मिलने वाला विदेशी अनुदान ‘‘दुराग्रहपूर्ण तरीके से जन हित’ को प्रभावित कर सकता है।’’
जन सम्मेलन में शामिल हों!

अभिव्यक्ति व संगठित होने की स्वतंत्रता पर हो रहे
राज्य के हमले के खिलाफ जन सम्मेलन में शामिल हों।

स्थान: डिप्यूटी स्पीकर हाल, कान्स्टीश्युशन क्लब
दिनांक: 17 मई, 2013,
समय: शाम 2.30 - 600 बजे तक

मौलिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व संगठित होने पर आफस्पा,
राज्यद्रोह सम्बंधी कानून और एफसीआरए अधिनियम 2010 के माध्यम से हमले हो रहे हैं

इस साजिश के खिलाफ एकजुट हों।
नवउदारवादी व जनविरोधी राजनीति के खिलाफ एकजुट हों।

जनधिकार संघर्ष समिति
आयोजक:
(अशोक चौधरी, अनिल चौधरी, कल्याणी मेनन, अचिन वनायक, चितरंजन सिंह, अफसर जाफरी, आनन्द स्वरूप वर्मा, रोमा, मानसी शर्मा, श्वेता त्रिपाठी, भारगवी, सत्यम श्रीवास्तव और अन्य)

प्रेस कांफ्रेंस में 300 से अधिक संगठनों, सामाजिक समूहों, जमीनी कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, लेखकों द्वारा समर्थित एक बयान भी जारी किया गया, जो प्रत्येक भारतीय के संवैधानिक अधिकारों के साथ खड़ा है ताकि शांतिपूर्ण, अहिंसक, लोकतांत्रिक तरीके से राज्यसत्ता की नीतियों पर सवाल उठाने, उनको चुनौती देने और उनका विरोध करने के अधिकार सहित शासन में भागीदारी सुनिश्चित हो सके। बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में एडमिरल (सेवानिवृत) रामदास, वसंत कन्नाबिरन, प्रफुल बिदवई, राम पुनियानी, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुम्बडे, संदीप पांडेय, कल्याणी मेनन सेन, हेनरी तिफाग्ने, सहेली, अशोक चौधरी, सुभाष गताडे, सईद बलोच (पाकिस्तान), सरूप ध्रुव, असद जैदी, बेजवाडा विल्सन, टोनी लियानो (फिनलैंड), एंटोनियो विलाविसंसियो (इक्वाडोर), अमानुल हक (बांग्लादेश), और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, अजरबैजान, फिलिपींस, थाईलैंड, स्पेन, तजाकिस्तान, फ्रांस, अमेरिका, बेलजियम, कनाडा, नेपाल, श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, मंगोलिया और किर्गिस्तान के अन्य सम्मानीय व्यक्ति और संस्थाएं शामिल हैं।

कांफ्रेंस में बोलते हुए इंसाफ के महासचिव चितरंजन सिंह ने कहा कि इसे समझने के लिए हमें एफसीआरए कानून, 1976 में 2010 में किए गए संशोधन और तदुपरांत 2011 से लागू नए कानून के नियमों पर एक नज़र डाल लेने की आवश्यकता है जिससे सरकार की असली मंशा और विदेशी अनुदान रोकने की आड़ में सरकार की दमनकारी राजनीति का पदाफाश किया जा सके। भारत सरकार ने 2010 में जो नया एफसीआरए कानून बनाया उसका नियम-3 सबसे विवादित पक्ष है जो मौजूदा फैसले के संदर्भ में प्रासंगिक है। यह कहता है कि ऐसा कोई भी संगठन जो ‘‘आदतन जनता के हित में बंद, हड़ताल, रास्ता रोको, रेल रोको या जेल भरो जैसी राजनीतिक कार्रवाइयों को अंजाम देता हो’’, वह एफसीआरए का पात्र नहीं हो सकता। ऐसी किसी भी इकाई को सरकार ‘‘राजनीति प्रकृति’’ वाला संगठन कहती है, हालांकि यह श्रेणी तय करने का सर्वाधिकार उसने अपने पास सुरक्षित रखा हुआ है।

उन्होंने कहा कि इंसाफ ने 5 अगस्त 2011 को कानून में इस नियम के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसे 16 सितंबर 2011 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद 2 जनवरी 2012 को इंसाफ ने यही याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाई जिसे स्वीकार कर लिया गया और सरकार से इस पर जवाब मांगा गया, जो उसने आज तक नहीं दिया है। इस मामले में दिलचस्प बाात यह है कि इंसाफ को किसी ऐसे संगठन की नज़़ीर पेश करना है जिसका एफसीआरए इन नियमों के तहत प्रतिबंधित किया गया हो और संयोगवश खुद इंसाफ ही ऐसा इकलौता और पहला उदाहरण बन गया है जिसका खाता राजनीतिक गतिविधियों के नाम पर इस माह सरकार ने सील कर दिया।

चितरंजन सिंह ने कहा कि मौजूदा प्रतिबंध का सर्वाधिक अहम पहलू यही है कि कुडनकुलम से लेकर कश्मीर तक देश भर में चल रहे जल, जंगल, ज़मीन, अस्मिता और अधिकारों के संघर्षों पर एक साथ लगाम कसी जा सके और उन्हें चलाने वाले संगठनों व व्यक्तियों को उन बुनियादी सुविधाओं से महरूम किया जा सके जिसमें इंसाफ की लगातार एक भूमिका रही है। अगर बैनर-पोस्टर छापने में मदद देना, किताबें छपवाना, संघर्ष सामग्री का वितरण, प्रदर्शन स्थल का खर्चा उठाना और लोकतंत्र के हक में बात करना भी ऐसी ‘‘राजनीतिक कार्रवाई’’ है जिसके चलते आपकी रोजी-रोटी छीनी जा सकती हो, तो वास्तव में यहां सवाल गंभीर खड़ा हो जाता है कि इस देश में लोकतंत्र है भी या नहीं! संविधान के अनुच्छेद 19(अ) में वर्णित जिस अभिव्यक्ति की आज़ादी के मूलभूत अधिकार का संदर्भ हम लोग बार-बार देते हैं, क्या उसका अब कोई मायने नहीं रह गया है?

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अन्य जानकारी के लिए कृपया संपर्क करेंः

इंसाफ - 011-65663958
श्रीप्रकाश - 09406614800
ई-मेल: insafdelhi@gmail.com
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1 टिप्पणियाँ:

  1. जल,जंगल,जमीन से वंचित होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. सरकार और उसकी संस्था पुनर्वास का भरोसा दिलाती हैं.मगर विस्थिपितों की समस्या बनी रह जाती हैं, वे अपने अधिकारों की जंग बिना लड़े हार जाते हैं .

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