मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका गाँव में प्रस्तावित चुटका परमाणु संयंत्र के विरोध में स्थानीय आदिवासी 13 फरवरी, 2017 से सदबुद्धि सत्याग्रह पर बैठे है।
"जब हुकूमतें पागल हो जाती हैं तो उन्हें होशोहवास में लाने के लिए मिलजुलकर जतन करने पड़ते हैं । उदारवाद की झक्क में देश की सरकारें पगला चुकी हैं। मुनाफे की हवस और कारपोरेट पूंजी की सेवा में इतनी बदहवास हैं कि जनता, देश और प्रकृति सबको दांव पर लगाने से नहीं चूक रही हैं। मगर वे भूल जाती हैं कि अंततः यह जनता है जो सब कुछ तय करती है। " यह बात 13 फरवरी को जबलपुर से 75 किलोमीटर दूर मंडला जिले में नर्मदा किनारे बसे एक छोटे से गाँव चुटका में इकट्ठा हुए जनांदोलनों और वामपंथी आन्दोलनों के वरिष्ठ नेताओं ने की। वे स्थानीय जनता के भारी विरोध, ग्राम सभाओं के स्पष्ट इनकार और नर्मदा के समूचे पानी के जहरीले हो जाने की विशेषज्ञ रिपोर्ट के बावजूद परमाणु बिजली संयंत्र लगाए जाने का विरोध करने लिए सरकार की सदबुद्दि के लिए सत्याग्रह की उदघाटन सभा में बोल रहे थे। विगत 10 वर्षों से इस परमाणु संयंत्र के खिलाफ लड़ाई जारी हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा एनएपीएम की मेधा पाटकर तथा सीपीआई(एम) के राज्य सचिव बादल सरोज ने इस सभा में साफ़ किया कि चुटका की लड़ाई सिर्फ इस घाटी में बसे आदिवासियों और ग्रामीणों की लड़ाई नहीं है। यह जल जंगल जमीन और जिंदगी के लिए जूझ रहे भारतीयों की लड़ाई है। उन्होंने इससे जुड़े मसलों तथा सरकार की विनाशकारी नीतियों के साथ उनके रिश्ते को भी उजागर किया।
आंदोलन के नेता तथा बरगी विस्थापितों के संघर्ष के समन्वयक राजकुमार सिन्हा के अनुसार इस सद्बुध्दि सत्याग्रह की मुख्य मांगों में
- चुटका परमाणु बिजली परियोजना को रद्द किये जाने।
- बरगी विस्थापितों के पुनर्वास संबंधी सभी लम्बित मामलों का तत्काल निराकरण किये जाने ।
- वनाधिकार क़ानून के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार देने की कार्यवाही को आगे बढ़ाने ।
- मछुआरों के हित में बरगी जलाशय में ठेकेदारी खत्म कर मत्स्याखेट एवम् विपणन का पूर्ण अधिकार बरगी मत्स्य संघ को दिए जाने की मांगे शामिल हैं।
साभार : लोकजतन
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