'मेक इन इंडिया' का धौखा : राष्ट्रीय सेमिनार, 29 अगस्त 2016, नागपुर, महाराष्ट्र


'मेक इन इंडिया' में औद्योगिक गलियारे , 'स्मार्ट सिटी' परियोजना, डिजिटल भारत और स्टार्ट अप इंडिया का  सपना दिखाया जा रहा है । अंततः मेक इन इंडिया'  तब साकार होगा जब सरकार देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सस्ती भूमि, सस्ता श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट प्रदान करेगी । इसके लिए जमीन और जंगल के विशाल क्षेत्र किसानों से छीन लिए जायेंगे,आदिवासियों, दलितों का बर्बर दमन किया जायेगा । विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन 'मेक इन इंडिया का धोख़ा' विषय पर 29 अगस्त 2016 को नागपुर में एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन कर रहा है। हम जन आंदोलनों, संगठनों, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, कार्यक्रताओं से अपील  करते है की आप सेमिनार में शामिल होके 'मेक इन इंडिया' के शोषणकारी एजेंडे के खिलाफ विरोध के संघर्ष को मजबूत करने में सहयोग दे। पेश है विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन का आमंत्रण;

मेक इन इंडिया का धोख़ा  

एक दिवसीय केंद्रीय सेमिनार एवं जाहिर जनसभा

29 अगस्त 2016, सुबह 10.30 से

स्थल: शहीद बाबूराव शेडमाके सभागृह , परशुराम भवन, सेंचुरी होटल के बाजु में, घाट रोड, नागपुर, महाराष्ट्र

प्रमुख वक्ता:

सुधा भरद्वाज, अधिवक्ता, बिलासपुर हाई कोर्ट, छत्तीसगढ़

डॉ. श्रीनिवास खान्देवाले, अर्थशास्त्री, नागपुर, महाराष्ट्र

डॉ. रमेश शरण, रांची विश्वविद्यालय, झारखण्ड

राकेश रंजन, दिल्ली विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली

बी. एस. राजू, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें

एडवोकेट अजय कुमार ajaykumar.dost@gmail.com 
साथियों,

जैसा कि हम जानते है कि पिछले दो वर्षों से, जब से मोदी के नेतृत्व में आर.एस.एस समर्थित भाजपा की सरकार सत्ता में आई है तब से भारतीय जनता को लुभाने के लिए कई परियोजनाओं, कार्यक्रमों, नारे और योजनाओं की घोषणा की जा रही है। मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल भारत, स्वच्छ भारत अभियान, योग दिवस, आदि इसी कड़ी के भाग है,  जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ यानि की ‘भारत में बनाओ’ इस सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है। लेकिन इन बड़ी-बड़ी घोषणाओं के वजह से आम जनता के जीवन पर कोई भी सार्थक प्रभाव नहीं हो रहा उल्टा यह जनता के जीवन को और कष्टमय बना रहा है।

'मेक इन इंडिया' नाम की यह बात भारत की मेहनतकश जनता के लिए कोई नई चीज नहीं है, यह सिर्फ 1990 के दशक के उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एल.पी.जी) की शोषक नीतियों का अगला विध्वंसक चरण है। निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों EPZ, विशेष आर्थिक क्षेत्रों SEZ के रूप में कुछ विशेष स्थानों / क्षेत्र की विदेशी परिक्षेत्रों के रूप में परिकल्पना की ये नयी निरंतरता है, जो अब 'मेक इन इंडिया' के तहत पूरे भारत को ही विदेशी क्षेत्र बनाने की साजिश है जिसमें भारत की मेहनतकश जनता और उनके श्रम को किसी चारे की तरह उपयोग में लाया जायेगा। यह सरकार, इसके विभिन्न कार्यों के माध्यम से जनता पर हमलों को और भी तेज कर रही है, इसी के तहत भूमि अधिग्रहण विधेयक के रूप में जन विरोधी कानून लगाने की कोशिश हो या प्रशिक्षु (अप्रेंटिस) अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम जैसे श्रम कानूनों में शोषक संशोधन करके, खनन संबंधित अधिनियमों में कठोर परिवर्तन यादी द्वारा ये हमला स्पष्ट हो रहा है. मेक इन इंडिया का सीधा मतलब यह है कि हमारा देश बाहरी कंपनियों को यहाँ के  प्राकृतिक संसाधन, कच्चा  माल और श्रम काफी सस्ती कीमतों में मुवैया करेगा, और पूंजी विदेशियों द्वारा निवेश की जाएगी (FDI)। मतलब संसाधन और श्रम हमारा और मुनाफा बाहरी कंपनियों का. इसके अलावा, साम्राज्यवादी देशों के समक्ष नतमस्तक हो चुकी हमारी सरकार और विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्रावधानों का पालन करने की मजबूरी के वजह से भारत जैसे विकासशील देशों को अपनी तकनीक आविष्कार और उसपे खर्च करने के भी अधिकार नहीं है. तो अंततः तकनीक के उपयोग के वजह से रॉयल्टी भी बड़े कॉर्पोरेट के खजाने को में भरी जाएगी।

'मेक इन इंडिया' परियोजना के तहत, चार औद्योगिक गलियारों की योजना बनाई गयी है। 'स्मार्ट सिटी' परियोजना, डिजिटल भारत और स्टार्ट अप इंडिया भी इन योजनाओं का एक हिस्सा है। इसलिए इन परियोजनाओं के लिए, अंततः सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC’s)/ TNC’s और उनके भारतीय समकक्षों को सस्ती भूमि, सस्ता श्रम और प्राकृतिक संसाधन प्रदान करेगा।  इसके लिए जमीन और जंगल के विशाल क्षेत्र किसानों से छीन लिए जायेंगे, जिसमे विशेष रूप से आदिवासियों, दलितों और पिछड़ी जातियों को इसका भारी नुकसान झेलना पड़ेगा, और इस मेक इन इंडिया के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी को भी खत्म कर दिया गया है, मेहनतकशों के वीर संघर्ष के कारण अधिनियमित किये गए विभिन्न सुरक्षा प्रावधानों को कानूनों के किताबों से नष्ट कर दिया जा रहा है । स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत सरकार शहरों को आकर्षक बनाने और सौंदर्यीकरण के नाम पर शहरों से झुग्गियों को ध्वस्त कर रही है, श्रमिक बस्तियों से मेहनतकश लोगों को विस्थापित कर उनकी जमीने धनवानों और बिल्डरों को देने की निति सरकार निभा रही है, और इस स्मार्ट सिटी परियोजना के वजह से शहरी कामकाजी वर्ग जिसमे मुख्य रूप से दलित और पिछड़े जाती समुदायों के लोग है उनका जीवन स्तर और भी गंभीर अवस्था में जा रहा है. यहा तक की बहोत सारे शहरी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के नाम पर सार्वजनिक  वितरण प्रणाली (पीडीएस) को बंद कर दिया गया है, सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है या उन्हें निजी कंपनियों के हाथो में डाला जा रहा है जो शिक्षा को महंगा कर देंगे, सार्वजनिक स्वास्थ सेवाए बंद की जा रही है,  और ये सब हो रहा है शहरों और सुविधायो को ‘स्मार्ट’ बनाने के नाम पर।

विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था 2007-08 के बाद से ही अपनी सबसे खराब आर्थिक संकट के चरण में है जो दिन-ब-दिन और गहरी खायी में गिरती चली जा रही है। साम्राज्यवादी ताकतें 'तीसरी दुनिया' के देशों में अपने  दलाल नौकरों के माध्यम से उन्ह देशो के लोगों पर ईस बिगड़ी हुई अर्थ व्यवस्था का बोझ फेंक कर, अपने आर्थिक संकट से उबरने का सपना देख रहे हैं। भारत में भी, मोदी सरकार, अपने पिछली सरकार के कदमों का अनुसरण करते हुए, 'मेक इन इंडिया' के धोखें/ छलावे के तहत साम्राज्यवादी एजेंडे को भारत में जोरशोर से लागु कर रही है. और साथ ही साथ लव जिहाद, गोमांस खाने पर प्रतिबंध लगाने, अपने हिंदुत्व-राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोही आदि संस्करणों द्वारा ये आक्रामक तरीके से अपने गुरु/आका आरएसएस के ब्राम्हणवादी-हिंदुत्वा के एजेंडे को बढ़ावा देने का काम कर रही है. दलित विद्यार्थी रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या, एफटीआईआई, जेएनयू, सेंसर बोर्ड जैसे के सरकारी संस्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चमचो और कर्यकर्तायो की नियुक्तिया इसकी कुछ झलक मात्र हैं।

सीधे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि मेक इन इंडिया के नाम से ये सरकार विदेशी साम्राज्यवादीयों के लिए देश के संसाधनों को बेच रही है। और इन सब धोखेंकी योजनाओं से युवाओं की बेरोजगारी को कम करने में कोई सहायता नहीं होती, इसके बजाय इस प्रकार के योजनाओं के कारण भोजन, आवास और कपड़ों के अपने बुनियादी अधिकारों से लाखों लोगों को  वंचित कर दिया जा रहा है। दूसरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने फासीवादी-सांप्रदायिक एजेंडे द्वारा जनता को विभिन्न मुद्दों पर भ्रमित कर रही है और उन्हें असल मुद्दों से भटका रही है।

देश के विभिन्न जगह में, लोग इस साम्राज्यवादी लूट और शोषण के खिलाफ लड़ रहे हैं। जगह-जगह पे लोग गलियारे परियोजनाओं (इंडस्ट्रियल कॉरीडोर), स्मार्ट शहरों, खनन, औद्योगिक परियोजनाओं, अभयारण्यों, सेज (SEZ) और अन्य जन विरोधी परियोजनायों के खिलाफ संघर्ष में उठ रहे हैं। 'मेक इन इंडिया' में केवल लोगों के दुख में वृद्धि हि होगी। इसलिए हमें लड़ रहे लोगों के साथ एक एकता बनाने के लिए काम करना जरुरी है और इस मेक इन इंडिया को पूरी तरह से नकारते हुए इसके खिलाफ विरोध को संगठित करना भी जरुरी है। विशेष रूप से कठोर कानूनों के तहत लोगों को और उनके नेतृत्व को गिरफ्तार करना, लोगों के विरोध पर फायरिंग, गुंडों और पुलिस द्वारा कार्यकर्ताओं की हत्याए, नेतृत्व पर निगरानी बढ़ाना, जन संगठनो की झूटी ब्रांडिंग कर उन पर प्रतिबंध लगाने और अन्य विभिन्न तरीकों से लोगों के आंदोलनों को दबाने के लिए सरकार के भरपूर प्रयासों के बावजूद लोग आज संघर्ष कर रहे है. लोग सरकार के शोषक नीतियों के खिलाफ मजबूती से खड़े हो रहे है और सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर कर रहे है. जैसा की भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक के मुद्दे में जो कुछ हुआ, पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम, ओडिशा में नियामगिरी संघर्ष और पॉस्को विरोधी आंदोलन, महाराष्ट्र में जैतापुर, आगरी-मसेली (कोरची), सुरजागड, दमकोंडवाही, छत्तीसगढ़ में लोहंदिगुदा, झारखंड में काठीकुंद और अन्य जगहों पर, जहा पर लोगो के संघर्ष के सामने सरकार को पीछे हटाना पड़ा. सिर्फ संघर्षशील जनता का सयुक्त जन आंदोलन हि इस फासीवादी साम्राज्यवादी लूट को रोक कर इसके शोषक रचना को उखाड़ फेक सकता है, और एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की राह बना सकता है जो समानता और न्याय के आधार पर विकास की प्रक्रिया को आगे लेके जाये।

और आगे इसी लड़ाई को मजबूत करने के लिए, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन "मेक इन इंडिया का धोख़ा" इस विषय  पर एक दिवसीय केंद्रीय सेमिनार और जाहिर जनसभा का आयोजन कर रहा है। हम विस्थापन विरोधी जन आंदोलनों, संगठनो, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, कार्यकर्तायों से अपील करते है की आप सेमिनार में शामिल होके 'मेक इन इंडिया' के शोषणकारी एजेंडे के खिलाफ विरोध के संघर्ष को मजबूत करने में सहयोग दे। आप सभी को तहे दिल से इस सेमिनार और जनसभा का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

इन्कलाब जिंदाबाद...

विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन


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एक दूसरे के संघर्षों से सीखना और संवाद कायम करना आज के दौर में जनांदोलनों को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। आप अपने या अपने इलाके में चल रहे जनसंघर्षों की रिपोर्ट संघर्ष संवाद से sangharshsamvad@gmail.com पर साझा करें। के आंदोलन के बारे में जानकारियाँ मिलती रहें।
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