अवैध खनन की लूट के विरोध में अभियान शुरू

एम.एम.पी (mines, minerals & People) ने खनन के बदले स्वरूप, खनन कानून, समुदाए कल्याण के लिए प्रस्तावित योजना, अवैध खनन और भावी पीढ़ी पर एक दिवसीय चर्चा का आयोजन भोपाल में 14.12.2015 को किया| श्रीधर भूविज्ञानिक और mm&P के सलाहकार ने बताया कि खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)) कानून 1957 का संशोधित कानून मार्च 2015 में पारित किया गया, जिसका एक मात्र मकसद है कि गैर कोयला खनिजों को भी नीलामी के ज़रिये आवंटित करने के साथ मौजूदा पट्टों को तथा नए पट्टों को 50 साल के लिए दिया जाना है| 1957 के कानून में पट्टे 20 साल के लिए दिये जाते रहे हैं| अब स्थिति यह होगी कि पट्टे धारक का कब्ज़ा लंबे समय के लिए होगा और करीब दो पीढ़ी के अधिकारों पर हावी होगा| सरकार ने 2010 के संशोधन में 26% हिस्सेदारी का प्रावधान सुझाया था, जिसे हटा कर जिल्ला खनिज फ़ाउंडेशन (DMF) गठित करते हुए रॉयल्टी के समान राशि इसके कोश में डालनी थी। परंतु अब 2015 के कानून में सिर्फ सेक्शन 9बी के अंतर्गत 30% रॉयल्टी के समान राशि उन पट्टेधारकों को जमा करनी है जिनके पट्टे 12 जनवरी 2015 से पहले के हैं और 12 जनवरी 2015 के बाद दिये गए पट्टों पर  केवल 10% राशि जमा करने का प्रावधान है|

अशोक श्रीमाली सेक्रेटरी जनरल mm&P ने बताया कि अवैध खनन का सिलसिला थम नहीं रहा। संसद में भी चर्चा होती रही है पर अवैध खनन की संख्या लगातार 80000-90000 की बनी हुई है| मध्य प्रदेश के संदर्भ में अवैध खनन की संख्या 6000-7000 के बीच बनी हुई है (लोक सभा स.सं॰ 3225, 10.08.15)। केवल 129 करोड़ के लगभग बतौर जुर्माना राज्य सरकार हासिल कर पाई है, जबकि हजारों करोड़ मूल्य का खनिज कुछ ही लोगों या व्यवसायों के द्वारा लूटा जा चुका है| इसका नुकसान सरकार व  समुदाय को भुगतना पड़ रहा है| श्रीधर ने बताया कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने कई बार ऑडिट परीक्षण के दौरान कई राज्य सरकार की बहुत सी खामियाँ सामने रखी हैं; जिन में रॉयल्टी का कम आंकलन, डैड रेंट की वसूली नहीं करना, स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस को अनदेखा करना, एम॰पी॰ ग्रामीण अवसंरचना एवं सड़क विकास कानून 2005 के तहत ग्रामीण अवसंरचना एवं सड़क विकास टैक्स का आंकलन न करना इत्यादि| कैग ने 2009 में जो परीक्षण किए उन में 433 मामलों में 333.33 करोड़ के नुकसान का आंकलन किया गया और 2013-14 में  यह नुकसान 196 करोड़ रहा|

सरकारी अव्यवस्था और योजनाओं के कार्यन्वयन की व्यथा को बताते हुए गुमान सिंह (सलाहकार mm&P) ने मध्य प्रदेश की मानव विकास स्थिति को सामने रखा| प्रदेश के स्वास्थ्य सूचक जैसे नवजात मृत्यु दर, 5 वर्ष से कम उमर मृत्यु दर, सिलिकोसिस जैसी व्यावसायिक बीमारी में बढ़ोतरीदर , गरीबी दर इत्यादि देश के कई राज्यों से अधिक है। ऐसी स्थिति में पी.एम.के.के.वाई (प्रधान मंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना) भी इसी राह पर चलेगी| राज्य ने डिस्ट्रिक्ट मिनरल फ़ाउंडेशन (डी.एम.एफ) को खनन प्रभावित जिल्लों में स्थापित करने का परिपत्र मई 2015 में जारी किया पर इसके नियम अभी नहीं बने हैं| इस फ़ाउंडेशन में समुदाय की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए और राज्य के नियमों में भी इसे जगह मिलनी चाहिए| ज्यादा तर खनन वन छादित व आदिवासी क्षेत्रों में किया जा रहा है परंतु वन अधिकार कानुनु 2006 तथा पेसा कानून की अवहेलना की जा रही है। ऐसे में जब तक इस वन अधिकार कानुन के तहत वन निवासियों के वन अधिकारों की जांच व मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती, तब तक वन भूमि का किसी भी गैर वानिकी कार्यों के लिए हस्तांतरण नहीं हो सकता है। अप्रैल 2008 के बाद किया जा रहा खनन व वन भूमि का हस्तांतरण अवैध है अगर वन अधिकार कानुन को लागू करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है।

श्रीधर ने बताया कि खनन में हिस्सेदारी समुदायों को किसी भी अवैध खनन की गतिविधि को रोकने में शक्ति देती| पी.एम.के.के.वाई योजना में ग्रामीण अवसंरचना की बात ज़ोर शोर से की गयी है, पर सीधे तौर पर प्रभावित व्यक्ति या समुदाय को कितनी राहत मिल सकेगी यह आज की वस्तुस्थिति देखते हुए एक मुश्किल सवाल है| जबकि स्थानीय समुदाय जिस का सदियों से सामुदायिक परंपरागत संसाधनों पर जीवन चल रहा था वह आज इन संसाधनों के उपभोग, नियोजन व संरक्षण के अधिकार से वंचित कर दिया गया है|

सरकार को जितनी रॉयल्टी मिलती है (करीब 20-22,000 करोड़) वह खनिज मूल्य का मात्र 6-8% है| मध्य प्रदेश में करीबन 3000 करोड़ की रॉयल्टी पिछले साल मिली है| खेती के विपरीत् खनिज एक पुनः न पैदा होने वाला संसाधन है और यह हज़ारों वर्षों की प्रक्रिया से विकसित हुआ| फिर भी अगर खनन के प्रभाव कम करके सही ढंग से चलाना है, तब भी सरकार को भावी पीढ़ियों के लिए खनिज को बचाना ही होगा जिसको सर्वोच न्यायालय  ने सतता (Inter Generation equity) के सिद्धांत से जोड़ते हुए भी देखा है| सरकार भावी पीढ़ी के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए खनिज सम्पदा के दोहन व आज की पीढ़ी द्वारा लालच व मुनाफे के लिए अंधाधुंद दोहन तथा बरवादी को रोकना होगा|

दिन की चर्चा से निकले निष्कर्षों से यह मांग रखी गयी की सरकार अभिरक्षक की भूमिका में है और उसको प्रकृतिक संसाधनों को निजी लाभ के लिए देने का कोई हक़ नहीं है|

भावी पीढ़ी के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए खनिज सम्पदा के सयमित दोहन पर विचार किया जाना चाहिए  तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक भविष्य निधि बनाया जाए ताकि पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित हो सके।
सरकार का ध्यान गरीबी को खत्म करने, वन अधिकारों को मान्यता, पर्यावरण संरक्षण, प्रभावितों व विस्थापितों के हितों की रक्षा, उन की सतत आजीविका तथा रोजगार को सुनिश्चित करना व विस्थापन की प्रक्रिया को कम करना, कारगर सामाजिक व पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन की प्रक्रिया कायम करना, खनन से जुड़े कामगारों के अधिकारों और स्वास्थ्य का संरक्षण होना चाहिए| वन अधिकार कानून 2006  के तहत वन अधिकारों जिन में सांझा वन सम्पदा का अधिकार प्रमुख है को वन भूमि हस्तांतरण से पहले समुदाय को सौंप जाएँ।
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