भूमि अधिकार संघर्ष महारैली : 5 मई 2015, संसद मार्ग नयी दिल्ली !

भूमि अधिकार संघर्ष महारैली : 5 मई 2015, संसद मार्ग नयी दिल्ली !

देश के तमाम मेहनतकश किसान, मज़दूर, कर्मचारी, लघुउद्यमी, छोटे व्यापारी, दस्तकारों, मछुवारे, रेहड़ी व पटरी वाले और इनके सर्मथक प्रगतिशील तबकों के लिए यह एक अति चुनौतीपूर्ण दौर है। अब शासकीय कुचक्र के खिलाफ संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, जनसंघर्षों के लंबे समय से जुड़े हुए संगठन ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से करीब आ रहे हैं, और सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी क्रम में 2 अप्रैल को कांस्टिट्यूशन क्लीब में जमीन के मसले पर आंदोलन चलाने वाली कम्युकनिस्ट पार्टियों, आंदोलनों, जन संगठनों, किसान सभाओं और संघर्षरत समूहों ने मिलकर यह तय किया था कि यदि सरकार भूमि अधिग्रहण पर नया अध्या देश लाती है तो उसकी प्रति 6 अप्रैल को पूरे देश में जलाई जाएगी। देश भर से पांच करोड़ लोगों के दस्तअखत इसके खिलाफ इकट्ठा किए जाएंगे। 9 अप्रैल को विजयवाड़ा, 10 अप्रैल को भुवनेश्वर और 11 अप्रैल को पटना में राज्यत स्तीरीय आंदोलन होंगे। आंदोलनों द्वारा देश भर में ज़मीन वापसी का अभियान चलाया जाएगा और 5 मई को दिल्ली‍ में संसद मार्ग पर भूमि अध्रिकार संघर्ष रैली होगी। जमीन के मसले पर संघर्ष चलाने के लिए इस आंदोलन को नाम दिया गया है ''भूमि अधिकार संघर्ष आंदोलन''। इस जनविरोधी व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए यह पहली कड़ी है।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ 24 फरवरी 2015 को संसद मार्ग  पे महा-धरना और विरोध प्रदर्शन ने सरकार को 30  दिसंबर 2015 को लाये प्रथम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया था।  इसमें जुड़े देश के अनेक जन - संगठन, जन - आंदोलन, किसान-मज़दूर संगठन और देश के अनेक बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने एक साथ आकर भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर से लगातार केंद्र के NDA सरकार द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की तीखी आलोचना की है।  इस अध्यादेश को बिल की तरह लाकर, फिर से अध्यादेश के रूप में पारित करने के बाद देश के तमाम विपक्षी पार्टियों ने भी इस बिल पर सरकार का साथ नहीं दिया है , और इस भूमि अधिग्रहण बिल 2015 को वापस लेने की मांग की है।

भूमि अधिकार आंदोलन इस जनता विरोधी और किसान विरोधी बिल को तुरंत वापस लेने की मांग करता है।  साथ ही किसान-मज़दूरों के ज़मीन को लगातार गैर-संवैधानिक ढंग से देश भर में लूटने की नीति को बदलने की माँग करता है।  भूमि अधिकार आंदोलन लोगों के अधिकारों को छीनना, उनके रहने-खाने के स्रोत को जबरन लेकर कॉर्पोरेट हितो के लिए कानून का गलत इस्तेमाल करने की सरकारी नीति का भी विरोध करती है और देश के गरीब और मज़दूर वर्ग के लोगों को हितो में भूमि-सुधार और जल-जंगल और ज़मीन पर लोगों के अधिकारों को पहचानने की मांग करती है।  'मेक - इन - इंडिया ' के नाम पर देश के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने के केंद्र के NDA सरकार के प्रयास की समीक्षा करने की मांग भी ये मंच करता है। 

देश के किसान संगठन,  ट्रेड यूनियन , महिला अधिकार आंदोलन , युवा आंदोलन जिसमे शहरी गरीब , मच्छी - मज़दूर और आदिवासी आंदोलनों के हज़ारों प्रतिनिधि 5 मई 2015 को सुबह 10 बजे संसद मार्ग पहुंचे रहे हैं। मोदी सरकार देश में लाखों लोगों के जीवन यापन को खतरे में डालकर कॉर्पोरेट हितो का ध्यान रखने के लिए अध्यादेश को लाने में कोई कसर  नहीं छोड़ रही।  देश के कई हिस्सों में जनता के विरोध को हिंसा से दबाने की कोशिश लगातार चल रही है। मार्च में पेश किये बजट और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और तमाम अन्य अध्यादेश के ज़रिये जंगल और समुद्री क्षेत्र में रह रहे लाखों लोगों की ज़िन्दगी पर  निश्चित ही बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा, जिससे उन्हें अपने घरों को छोड़ कर प्रवासी बनना पड़ेगा और सस्ते श्रम पर मज़दूरी करके बेहद गरीबी, असुरक्षित और अनिश्चितता का जीवन बिताना पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा उदहारण है उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में कन्हार बांध निर्माण के लिए गैर कानूनी रूप से भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलनकारी ग्रामीणो पर १४ व् १८ अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गोलीकांड एवं लाठी चार्ज करना जिस ने यह साबित कर दिया है की कॉर्पोरेट जगत हर क्षेत्र में भूमि हथियाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है.

2 मई को IWPC में हुए प्रेस वार्ता में दिल्ली में मौजूद सामाजिक आंदोलन, किसान-मज़दूर और ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों ने प्रेस के साथियों से बातचीत में सारे जन-समर्थी, बुद्धिजीवी, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष समूहों और लोगों से अपील की की वह भूमि अधिकार संघर्ष रैली में 5 मई 2015 को संसद मार्ग  पहुंचे और देश के हर कोने से आये हज़ारों लोगों के विरोध प्रदर्शन में उनका साथ दें।  ज़मीन जैसे इतने पेचीदे  और देश के तमाम  लोगों, ख़ास कर मज़दूर- किसान के जीवन और खेती के विकास के मुद्दे पर उनसे बिना किसी बातचीत, ठोस समाधान के बिना अध्यादेश के रास्ते देश भर और संसद के भीतर हो रहे विरोध के बावजूद सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश दूसरी बार 3 अप्रैल 2015 को मनमाने ढंग से जारी दिया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐतराज़ जताया है। 

प्रेस वार्ता को  हन्नान मौलाह (All India Kisan Sabha, 36 Canning Lane), अतुल अंजान (All India Kisan Sabha) , सत्यवान (All India Krishak Khet Mazdoor Union) , रोमा (All India Union of Forest Working People),  और भूपिंदर सिंह रावत (NAPM) ने प्रेस वार्ता को सम्बोधित किया।

जन आदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम),अखिल भारतीय वन श्रम जीवी मंच,अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), अखिल भारतीय किसान सभा (केनिंग लेन),अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर संगठन,लोक संघर्ष मोर्चा, जन संघर्ष समन्वय समिति,छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन,किसान संघर्ष समिति, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, इन्साफ,दिल्ली समर्थक समूह,किसान मंच, भारतीय किसान यूनियन
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