कहा जाता है कि राजा भागीरथी अपने पुरखों को तारने के लिए हिमालय से गंगा बहा कर तीर्थराज प्रयाग लेकर आये थे। लाखों श्रद्धालु हर साल गंगा व जमुना के संगम तट पर मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं। पर आज के राजा इन नदियों का पानी कारपोरेट घरानों व विदेशी कम्पनियों को बेच रहे हैं। पानी का निजीकरण पानी पर लोगों के नियंत्रण का अधिकार छीन रहा है और उन्हें अपनी परंपरागत आजीविका से बेदखल कर रहा है। इन्हीं सवालों की रोशनी में अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने कुंभ मेले में जल संसद का अभियान चलाया। इसके तहत गीतों और पर्चे के जरिये सघन जन संवाद का आयोजन हुआ। जल संसद में जनता से अपील की गयी कि कल्पवास में किये गये त्याग को देशभक्ति की दिशा दें और इन कम्पनियों को पानी उठाने की अनुमति के विरूद्ध आवाज बुलन्द करें। पेश है राजकुमार पथिक की रिपोर्ट;
गंगा व यमुना केवल पुरखों की याद की निशानी नहीं हैं। यहां से पूर्वजों ने भारत की सभ्यता का विकास किया था, खेती की, जीवन बढ़ाया और भारत को एक विशाल देश के रूप में विकसित किया। एक समय भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। नदी से जीवन के बहुत सारे काम चलते ह®। खेती से अन्न मिलता है। अन्य लाभकारी फसलें होती ह®। भूगर्भ में जलस्तर बना रहता है, प्यास बुझती है। शहरों में पेयजल आपूर्ति होती है व शहरों व गांवों के कचरे की सफाई होती है। पानी सफाई करने के काम आता है, पर गन्दा पानी प्रदूषण और बीमारी फैलाता है। नदी में मछली पलती ह®। सामान व लोगों का परिवहन होता है। प्राकृतिक संतुलन बना रहता है वरना भंयकर सूखे व बाढ़ से पूरा जीवन हताहत हो जाए।
बारा में जेपी ग्रुप का प्रयागराज पावर कारपोरेशन बन रहा है। इसके लिए पड़ुआ से लोहगरा तक 17 किमी लम्बी छह फुट व्यास का पाइप इसके लिए बिछाया जा रहा है। इससे मई-जून में नदी पूरी तरह सूख जायेगी। करछना में इसी ग्रुप का संगम पावर प्लाण्ट लगाया जा रहा है। इन दोनो कम्पनियों ने 97 लाख लीटर पानी उठाने के लिए सरकार से उचित अनुमति भी नहीं ली है। कंपनियां भारी पैमाने पर कोयले की राख उगल रही हैं और प्रदूषण फैला रही हैं लेकिन सरकार ने आंख बंद कर रखी है। इससे यमुना नदी के सूख जाने का खतरा है। कंपनी से निकलनेवाली राख से मरकरी और लेड रिसेगा जिससे भूगर्भ के पानी में जहर फैलेगा और यह पानी पीने व खेती के लिए अयोग्य हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो बहुत कुछ बर्बाद हो जायेगा- मछली, बालू, नहरें, खेती, शहर की पेयजल आपूर्ति और भूमिगत जल भी। इससे जमुनापार इलाके के दस लाख लोगों का जीवन प्रभावित होगा।
यमुनापार तीन ताप बिजलीघर एक झुण्ड में लगाये जा रहे हैं- बारा, मेजा और करछना में। बारा तापघर में रोज 24 हजार टन कोयला जलेगा और उससे कम से कम छह हजार टन राख रोज निकलेगी जो 7-8 किमीमीटर की गोलाई में खेती नष्ट कर देगी और जमीन में मरकरी और लेड के रिसने से पानी जहरीला हो जायेगा। बारा बिजलीघर शुरू में 51.25 लाख लीटर प्रति घण्टा और करछना बिजलीघर 46 लाख लीटर पानी खींचेगे। बाद में बारा प्लान्ट 1980 मेगावाट से 33 हजार मेगावाट की क्षमता का हो जायेगा और इसी अनुपात में और अधिक पानी खींचेगा।
सरकार का दावा है कि इससे जनता को बिजली मिलेगी, कम्पनियों व नौकरियों का विकास होगा। पर आजीविका छीन कर बिजली देना, कौन सी समझदारी है? भूखे-प्यासे बिजली लेकर क्या करेंगे? गरीबों तक बिजली पहुंचाने की बात तो केवल छलावा है। शहरीकरण बढ़ा है। उसके चमकदार बाजारों में तथा बड़ी कम्पनियों को सरकार बिजली देना चाहती है।
यह काम जगह-जगह सौर ऊर्जा केन्द्र लगा कर भी पूरा किया जा सकता है। सौर ऊर्जा एक कस्बे, कुछ गांव या शहर की एक कालोनी की बिजली आपूर्ति के लिए पर्याप्त होती है। इसमें खेती की जमीन भी नहीं जाती, ईंधन व पानी का भी प्रयोग शून्य होता है। इसे पहाड़ों व मकानों की छत पर कहीं भी लगाया जा सकता है। प्रारम्भिक लागत भले कुछ ज्यादा होती है लेकिन उसे चलाने में शून्य खर्च आता है क्योंकि कोई भी ईंधन व पानी का प्रयोग नहीं होता और जनता भी विस्थापित नहीं होती।
लेकिन सरकार उल्टी गंगा बहाना चाहती है। इसके लिए पूरे इलाके की खेती, नदी का पानी, आम लोगों का जीवन दांव पर लगाने को उतारू है। यह तीन बिजली योजनाएं सपा सरकार ने बनवाई थीं। बसपा ने उसका प्रस्ताव पारित किया तो कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने उसे स्वीकृति दी और भाजपा ने उसका समर्थन किया।
मंहगाई लगातार बढ़ रही है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, मिट्टी के तेल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं ताकि कम्पनियों का मुनाफा बढ़े। हमारा पानी पहले से ही कोकाकोला व पेप्सी जैसे विदेशी लुटेरों के हवाले किया जा चुका है। टिहरी बांध का पानी भी खेतों में सिंचाई की जगह दिल्ली को पानी की आपूर्ति करने वाली कम्पनी को दिया जा रहा है। हरे-भरे खेतों के बीचों-बीच फैक्ट्रियां लगाकर खेत सुखाये जा रहे हैं।
यमुना नदी इलाहाबाद शहर की पेयजल आपूर्ति का मूल आधार है। कंपनियों के कारण शहर की जल आपूर्ति तथा नहरें व ट्यूबवेल सिंचाई पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। नदी में पानी इतना कम है कि कुम्भ के लिए सिंचाई नहरें रोक दी जाती हैं। मई-जून में तो और भी कम पानी होता है।
Delhi ki Yamuna mein Bharat Sarkar ne aur Japan ki sarkaar ne hazaaro Crore Rupyaa lagaya jisse kuch haasil nahi hua.
जवाब देंहटाएंBarsaat mein baadh ke aasaar aur garmiyo mein sukhi Yamuna kya yehi hai Yamuna ki Destiny...