31 अक्टूबर के झारखंड हाईकोर्ट के इस बयान के बाद कि नगड़ी में निर्माण कार्य जारी रखने के लिए पुलिस और सुरक्षा बल की तैनाती हो, प्रशासन ने भी नगड़ी आंदोलनकारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. पेश हैं रांची से अतुल आनंद की यह रिपोर्ट;
अन्यायपूर्ण भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ नगड़ीवासियों के सत्याग्रह से झारखंड सरकार इतनी भयभीत हो गयी है कि उनके मनोबल को तोड़ने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। नगड़ी गाँव के बड़े-बुजुर्ग आंदोलनकारियों के साथ-साथ वहाँ के इंटर-पास, ग्रेजुएशन-पास लड़कों पर भी सरकार ने ‘विकास’ कार्य में बाधा पहुँचाने की संभावना व्यक्त करते हुये मुकदमा कर दिया है। गाँव के लगभग 15-20 लड़कों पर मुकदमा किया गया है।
बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। नगड़ीवासियों को अपने आंदोलन की वजह से प्रखंड कार्यालयों में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गाँव के एक युवक कुन्दन उरांव ने बताया कि नगड़ी का नाम सुनकर अधिकारी उन्हें नये आय प्रमाणपत्र और अन्य आवश्यक प्रमाणपत्र जारी करने से इन्कार कर देते है। इस वजह से उन्हें नौकरी के लिए आवेदन करने और दूसरे जरुरी कामों में रुकावटें आ रही है। सुदीप टोप्पो ने नगड़ी के युवाओं की व्यथा सुनाते हुये कहा कि अगर उनके भविष्य के साथ इस तरह खिलवाड़ किया जाएगा तो फिर वह भला कहाँ जाएँगे?
गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने नगड़ी की 227 एकड़ उपजाऊ जमीन आईआईएम और विधि विश्वविद्यालय को अपने कैम्पस बनाने के लिए दिए है। गाँववाले अपनी उपजाऊ जमीन छीने जाने का विरोध कर रहे है जो उनकी जीविका का साधन है। सरकार राज्य में शिक्षा के विकास को लेकर इतनी ‘प्रतिबद्ध’ है कि विकल्प होने के बावजूद नगड़ी के उपजाऊ जमीन पर ही केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों का निर्माण करने पर तुली हुई है। नगड़ी गाँव में केवल 8वीं कक्षा तक की ही एक स्कूल है। नगड़ी के युवाओं ने विपरीत परिस्थितियों में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की है। इनके परिवारों की आय का साधन खेती है। इनके परिवारों की आय इतनी नहीं है कि वे इन्हें आईआईएम और विधि विश्वविद्यालय में पढ़ा सके। राज्य सरकार इन परिवारों से उनकी आय का यह साधन भी छीनना चाहती है। तो आखिरकार यह तथाकथित विकास किसका होने वाला है?
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