ग्राम पंचायत जडेरा हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा रावी नदी की सहायक नदी साल नदी के साथ होल नाला पर प्रस्तावित माइक्रो हाईडल पॉवर प्रोजेक्ट के विरोध में वहां की स्थानीय जनता पिछले 8-10 सालों से लामबन्द है। स्थानीय जनता इस पॉवर प्रोजेक्ट का इसलिए विरोध कर रही है कि इस नाले के आसपास के गांव में न तो पीने के पानी का विकल्प है और न ही सिंचाई के लिए, इसके साथ-साथ वहां की वन सम्पदा भी काफी मात्रा में नष्ट होने का अनुमान है। क्योंकि जिस रास्ते से इस प्रोजेक्ट बनाने के लिए नहर निकाली जाएगी वहां पर विभिन्न प्रजाति की वनसम्पदा प्रचुरमात्रा में है। इसके साथ-साथ उस जंगल में वन्य प्राणी भी अलग-अलग किस्म के देखने को मिलते हैं, जितने वन्य प्राणी सेंचुरी टेरिट में भी नहीं हैं। इस नाले में 20-25 घराट (पन चक्कियां) चलते हैं जिससे पूरे इलाके का अनाज पीसा जाता है। वह सारे बन्द हो जाएंगे, 4 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए इस पूरी घाटी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। यह समझ वहां की स्थानीय जनता में थी इसलिए वहां की जडेरा पंचायत की ग्रामसभा ने 2002 में ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित करके अपना विरोध प्रकट कर दिया था। इसके साथ-साथ जब सम्बन्धित पंचायतें सिल्तापुर केला, वरौद, सुगल व पलई पंचायत में लोगों को भी यह एहसास हुआ कि हमें भी इस नाले से पानी का विकल्प खत्म होने वाला है तो उन्होंने भी ग्रामसभा के माध्यम से अपना विरोध दर्ज करवाया।
पहले तो यह प्रोजेक्ट बनाने वाली कम्पनी आसथा नाम की कम्पनी थी जब उन्होंने इस इलाके के लोगों का पूरी तरह से विरोध भांप लिया था कि यहां पर प्रोजेक्ट का काम चलना मुश्किल है तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट की दूसरी कम्पनी माइक्रो हाईडिल पॉवर कन्सट्रक्शन नामक कम्पनी को बेच दिया। इस कम्पनी ने भी काम चलाने के लिए काफी हथकंडे अपनाए। इस इलाके में ज्यादातर आबादी गद्दी और गुज्जर समुदाय की है और कुछ आबादी दलित समुदाय की भी है। यह सभी समुदाय आपस में भाईचारे की तरह प्रेमभाव से रहते हैं। लेकिन कम्पनी ने इन समुदाय में फूट डालने के लिए सारे हथकंडे इस्तेमाल कर लिए लेकिन लोगों की एकता बनी रही। इससे भी इनका काम नहीं चला तो कम्पनी ने नौजवानों को अपने साथ जोड़ने के लिए पैसे का लालच देकर अपने साथ जोड़ने का प्रयत्न भी किया और नौजवानों में शराबखोरी का प्रचलन भी चलाया जिससे एक नौजवान कम्पनी के ऑफिस में शराब पीकर गिरा और उसकी मृत्यु हो गई। इसी नाला से चम्बा शहर को भी पानी आता है और शहर के नजदीक सरोल पंचायत को भी इसी नाला से पानी आता है। अतः शहर के लोग भी इस प्रोजेक्ट के विरोध में खड़े होने लगे। लेकिन कम्पनी ने ऐसी साजिश रची कि शहर के नामी गुंडे को काम करने के लिए ठेके दे दिए। यही कारण है कि 14 फरवरी 2010 को स्थानीय जनता इस सारी लड़ाई को लेकर हाईकोर्ट में मुकदमा चलाने के लिए बैठक कर रही थी तो कम्पनी के ठेकेदार शहर से गाड़ियां भरकर गुंडे लाए जो सभी हथियारों से लैस थे। उन्होंने ग्रामीण जनता के ऊपर हमला कर दिया जिसमें 5 लोग का. रत्न चन्द (जिला पार्षद), मानसिंह जो कि उस वक्त उपप्रधान थे और लक्ष्मण, हेम राज और मनोज गंभीर रूप से घायल हुए। बाकी कई दूसरे लोगों को चोटें आईं। लेकिन वे डर के मारे अपने-अपने घर भाग गए। तीन आदमियों का उपचार तो जिला अस्पताल चम्बा में हुआ लेकिन जिला पार्षद का. रत्न चन्द व उपप्रधान मान सिंह को ज्यादा चोटें आई थीं, उनकी टांगों की हड्डियां बुरी तरह से फ्रैक्चर हो गईं थीं, इसलिए उनको इलाज करवाने के लिए जिला से बाहर के अस्पताल जाना पड़ा। जब वह कांगड़ा के मैडिकल हॉस्पीटल में दाखिल हुए तो हम दोनों का इलाज भी ठीक से हुआ। वहां पर भी साजिश चली और का. रत्न चन्द का तो डॉक्टर ने इलाज ही नहीं किया। उनके घुटने में नट वगैरा पड़ने थे तभी हड्डी ठीक हो सकती थी लेकिन डॉक्टर ने सिर्फ पलस्तर चढ़ा कर ऐसे ही रख रखा था। जब बाद में दूसरे हॉस्पीटल में उनको डॉक्टर को दिखाया गया तब पता चला। इतने छोटे से बिजली प्रोजेक्ट के लिए जनता पर इतना अत्याचार और फिर प्रदेश सरकार का मूक बने रहना, यह दर्शाता है कि इतने बड़े लोकतांत्रिक मुल्क भारतवर्ष में आजादी कोई भी मायने नहीं रखती। इतना कुछ होने के बावजूद भी प्रदेश सरकार ने ग्रामसभा के कई प्रस्ताव जो कि इस प्रोजेक्ट के विरोध में डाले गए थे, अनदेखी की है, इसके साथ-साथ हाईकोर्ट ने भी हमारी पेटीशन खारिज कर दीं और 12 अप्रैल 2011 को कम्पनी पुलिस बल के साथ काम चलाने के इरादे से फिर इलाके में आ धमकी। लेकिन स्थानीय जनता भी साहस दिखाकर इकट्ठी हो गयी और कम्पनी तथा पुलिस को आगे नहीं बढ़ने दिया। कम्पनी ने पुलिस चौकी स्थापित की लेकिन स्थानीय जनता भी वहां पर धरना लगा कर बैठ गई और चार महीने तक धरना जारी रहा। जब तक वहां पर पुलिस तैनात रही और कम्पनी को काम शुरू नहीं करने दिया। जब वहां से पुलिस हट गई तो सरकार को फिर स्थानीय जनता ने वार्निंग देते हुए धरना हटा लिया। लेकिन चार महीने तक धरना चलता रहा और शासन-प्रशासन मूक दर्शक बने रहे। 25 मार्च 2011 को प्रदेश सरकार द्वारा जनसुनवाई करवाई गई उसमें ए.डी.एम. को जनसुनवाई के लिए नियुक्त किया गया। जनसुनवाई की रिपोर्ट ए.डी.एम. ने लोगों के हक में भेजी। लेकिन उसके ऊपर भी सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की और जनता की आवाज को दबाने की कोशिश की। लोगों को अपने संसाधन बचाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ रहा है। यह है आजाद भारत की गुलामी का परिचय। - मान सिंह प्रधान
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