झारखण्ड : सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन अध्यादेश और राज्य दमन के खिलाफ आदिवासियों की चेतावनी रैली


फैज़ल अनुराग

खूंटी, 18 अक्टूबर 2016: झारखंड राज्य गठन के समय स्थानीय आदिवासियों ने एक बेहतर जीवन का सपना देखा था। किंतु आज 16 साल बाद हालात यह हैं कि खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की इस कदर लूट मची है कि एक बेहतर जीवन तो दूर आदिवासियों का पूरा जीवन ही संकट में पड़ चुका है। झारखंड की लाखों एकड़ जमीन जिस पर आदिवासियों का कब्जा था जबरन छीन कर कॉर्पोरेट्स को सौंपी जा चुकी है। प्राकृतिक संसाधन जिन पर सदियों से आदिवासी न सिर्फ अपनी आजीविक चला रहे थे बल्कि उनकी देख-रेख भी कर रहे थे, उन्हें मुनाफे के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंप दिया गया। यही नहीं इस अन्यायपूर्ण जबरन बेदखली के खिलाफ जब आदिवासियों ने आवाज उठाई तो उन्हें नक्सलवाद और माओवाद के नाम पर क्रूर राज्य दमन का शिकार होना पड़ा है। हाल ही में हुआ बड़कागांव गोलीकांड इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं।

इन तमाम लूट-खसोट के बाद अब सरकार स्थानीय आदिवासियों के लिए बने भूमि अधिकार सुरक्षा के कानूनों, छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट तथा साउथ परगना एक्ट, में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी कर दिया है। सरकार द्वारा स्थानीय नीति लागू की गई है जो राज्य से बाहर के लोगों को भी जमीन की खरीद-फरोख्त और आजीविका के उतने ही अधिकार देती है जितने कि वहां के मूल निवासियों को है। यह नीति पहले से ही उत्पीड़ित आदिवासियों के उत्पीड़न को और गहन कर देगी।

किंतु झारखंड के आदिवासी इन तमाम शोषण-उत्पीड़न के बावजूद इससे मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने दावा किया है कि जब प्राकृतिक संसाधनों की लूट की अनुमति उन्होंने अंग्रेजों को नहीं दी तो कॉर्पोरेट्स को भी नहीं करने देंगे चाहे इसके लिए कितनी भी कुर्बानी न देनी पड़े। इसी संकल्प को एक संगठित आवाज देने के लिए 18 अक्टूबर को झारखंड के खूंटी जिले के जिला कलेक्ट्रेट पर आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच एवं अन्य जनसंगठनों के नेतृत्व में 10000 आदिवासियों द्वारा चेतावनी रैली निकाली गई। इस रैली में सरकार द्वारा बनाए जा रहे लैंड बैंक, राज्य दमन, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, सीनटी तथा एसपीटी एक्ट में संशोधन तथा स्थानीय निति का पुरजोर विरोध करते हुए इसे किसी भी कीमत पर कार्यान्वित न करने देने का संकल्प लिया गया।






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