आदिवासी सम्मेलन का हिंसात्मक दमन : 9 आदिवासी हिरासत में तथा एक घायल


राज्य एक तरफ भाषा-संस्कृति की रक्षा तथा उन्नयन पर करोड़ों रुपये का प्रावधान करके काम करने की बात कहता रहता है। वहीं जब आदिवासी समुदाय अपनी भाषा-संस्कृतिकी रक्षा के लिए कोई आयोजन करने के लिए आगे बढ़ता है तो उसे राज्य नियोजित दमन और हिंसा का निर्मम सामना करना पड़ता है।


21 फरवरी 2012 को कोरापुट जिले के नारायणपटना तथा बंधुगन ब्लाक में तकरीबन 5000 आदिवासियों को हथियारों से लैस सुरक्षा कर्मियों ने अलग-अलग जगह पर उस वक्त रोक दिया जब वे ‘‘आदिवासी भाषा तथा संस्कृति बचाने’’ के विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे थे।

इस सम्मेलन का आयोजन बालीपेटा, हटपाड़ा में 21-22 फरवरी 2012 को किया जाना था, जिसमें कोरापुट जिले के 12 अलग-अलग आदिवासी समुदायों से 10,000 आदिवासियों के हिस्सा लेने की उम्मीद थी। यासी मलिया आदिवासी संघ द्वारा आयोजित किया जाने वाला यह अपनी तरह का पहला आदिवासी सम्मेलन था। इस आदिवासी सम्मेलन को जन अधिकार मंच के अध्यक्ष, लोक शक्ति अभियान के संयोजक प्रफुल्ल सामंत रे, जाने-माने कवि तथा पत्रकार रवि दास, निशान पत्रिका के संपादक लेनिन राय को सम्बोधित करना था।

किंतु स्थानीय प्रशासन तथा सिक्योरिटी फोर्स के हिंसात्मक  तथा दमनकारी रवैये ने यह सुनिश्चित कर दिया कि कोई भी आदिवासी सम्मेलन स्थल पर नहीं पहुंच सके। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि तेतुलिपादार गांव के पंचायत मुख्यालय के नजदीक जोडीजाम क्रासिंग पर लगभग 1000 आदिवासियों को तितर बितर करने के लिए सुरक्षा बलों ने हिंसा का प्रयोग किया। सुरक्षा बलों ने आदिवासियों पर बड़ी बेरहमी से लाठियां बरसायीं जिसमें 40 साल की आदिवासी महिला वानो नायिका के बायें हाथ में चोट लगी जिसके कारण वह गंभीर रूप से घायल हो गई। इसके अलावा आदिवासी बड़ी संख्या में पुलिस की लाठियों का शिकार बने। स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस द्वारा बेरहमी से लाठी चार्ज किए जाने के बाद सभी आदिवासी एक पहाड़ी पर एकत्रित हुए तथा आपसी विचार विमर्श के बाद दूसरे रास्ते से सम्मेलन स्थल पर पहुंचने का निर्णय लिया। मगर सुरक्षा बल इस पहाड़ी पर भी पहुंच गये। सुरक्षा बलों ने       तंगिनीपादार के रहने वाले 20 वर्षीय नवयुवक पितेरा वांगाडिका को नंगा करके पेड़ से बांधकर सबके सामने बड़ी बेरहमी से पीटा, इस पिटाई के कारण यह बेहोश हो गया।

इसी दौरान बालीपेटा हरपाडा में लगभग 200 सुरक्षा बल सम्मेलन स्थल पर किसी भी भी व्यक्ति के प्रवेश को रोकने के लिए सुबह 6 बजे से नजर रखे हुए थे। सम्मेलन स्थल  पर प्रतिभागियों के लिए जो रहने-खाने के इंतजाम किये गये थे, सुरक्षा बलों ने दोपहर को उसमें आग लगा दी। जब सम्मेलन स्थल पर मौजूद पत्रकारों ने नारायणपटना पुलिस थाने के अधिकारी श्री राउत से पुलिस दमन तथा आग लगाने की घटना के बारे में जानना चाहा तो श्री राउत का कहना था कि इन आरोपों के बारे में वह कुछ नहीं जानते।

इसी प्रकार जब पालापुट-बिक्रमपुर के पास 1000 आदिवासियों को जो कि जुलूस के रूप में नाचते, गाते तथा अपने पारम्परिक वाद्ययंत्रों को बजाते हुए सम्मेलन स्थल पर आ रहे थे, सुरक्षा बलों ने इन आदिवासियों को रोक दिया, डरा-धमका कर इन्हें वापिस जाने को मजबूर कर दिया।

सुरक्षा बलों द्वारा इन हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के कारण इस आदिवासी सम्मेलन का आयोजन नहीं किया जा सका। विश्वसनीय सूत्रों द्वारा यह भी पता चला है कि   बालीपेटा गांव के नजदीक आदिवासियों को सुरक्षा बलों द्वारा उस वक़्त रास्ते से उठा लिया गया जब वह सम्मेलन स्थल पर जा रहे थे। उन्हें बीएसएफ के जवानों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया तथा पोदापादार कैम्प के अंदर अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा गया। 22 फरवरी तक इन आदिवासियों के बारे में कोई खबर नहीं थी कि अभी इनकी क्या स्थिति है? इन 9 आदिवासियों के घरवालों को डर है कि या तो यह सभी मारे जा चुके हैं या इन्हें कैम्प के अंदर यातनायें दी जा रही हैं। इन्होंने मीडिया से इस बात की गुजारिश की है कि इस खबर को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें ताकि इन सभी को बचाया जा सके। - मनोरंजन राउत रे
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