इस बैठक में चर्चा की गई कि जनवादी संगठनों पर प्रतिबंध का सिलसिला चला आ रहा है और यह फासीवादी प्रवृत्ति को दिखाता है। मजदूर आंदोलन को आमतौर पर राज्य, पुलिस और कई बार मीडिया भी अपराध के तौर पर देखता है और इस तरह मजदूर संगठन और उसके नेतृत्व को भी इसी तरह देखने की एक प्रवृत्ति को देखा जा सकता है। मजदूर आंदोलन को समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक जनवादी संकेतक के बजाय अपराधी की तरह पेश करना, उस पर प्रतिबंध लगाना, गिरफ्तारियां करना और अधिकतम सजा देना हमारे लिए चुनौती है। हम मजदूर आंदोलन करते हुए जेल जाने वाले साथियों को राजनीतिक कैदी के रूप में देख ही नहीं पाते। जबकि यह एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई है।
मजदूर आंदोलन पर काम करते हुए आर्थिक लड़ाईयों के नजरीये के साथ उसके राजनीतिक अप्रोच पर जोर देना चाहिए। वस्तुतः मजदूर आंदोलन हमारे समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था से गहरे तौर पर और सीधा जुड़ा हुआ है। मजदूर संगठन समिति इसी तरह का एक संगठन था। इस पर प्रतिबंध और बवाना जैसी घटना हमारे लिए चुनौती है।
इस चर्चा के दौरान तय हुआ: मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध और बवाना जैसी इंडस्ट्रीयल एरिया में मजदूरों की मौत और मजदूर अधिकारों पर हो रहे हमले के खिलाफ एक राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में सम्मेलन। इसके पहले पर्चा तैयार कर मजदूरों और छात्रों के बीच जाना और उनके बीच कार्यक्रम करना। इस मसले पर कार्यक्रम पर और ठोस राय बनाने के लिए 20 फरवरी 2018 को एक बार फिर सारे संगठनों की मीटिंग तय की गई।
Anjani Kumar के वाल से साभार
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