उड़ीसा के कोरापूट जिले के सिमलीगुड़ा तहसली में स्थित है विशाल देव माली पर्वत। देव माली पर्वत यहां के स्थानीय आदिवासियो के लिए न सिर्फ अपने बत्तीस झरनों और एक नदी से पानी, औषधि, जड़ी बूटियां और कंद-मूल उपलब्ध करवाता है। बल्कि इस पर्वत से इन आदिवासियों के अनेकों आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। उनका मानना है कि उनके देवी-देवताओं का वास इसी पर्वत में है। इस सबके साथ- साथ माली पर्वत में दबी है बॉक्साइट की अपार संपदा। इस संपदा के खनन के लिए बिड़ला ग्रुप ऑफ कंपनीज 2003 में एक बॉक्साइट खनन परियोजना लेकर आया। तभी से ही यहां के स्थानीय आदिवासी माली पर्वत सुरक्षा समिति के बैनर तले हिंडालको (बिड़ला) कपंनी के खनन के खिलाफ 2003 से संघर्षरत हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि हिंडालकों द्वारा किया जा रहा बॉक्साइट खनन पर्वत को पूरी तरह से नष्ट कर देगा जिसके साथ ही उनका पानी, सब्जी, और खेती सब नष्ट हो जाएगी।
हिंडालको द्वारा किए जा रहे खनन से सिमलीगुड़ा के 4 ग्राम पंचायतों के 42 गांव प्रभावित हो रहे थे। माली पर्वत से निकलने वाले बॉक्साइट को कंपनी के संबलपुर तथा रुड़की प्लांट में जाना था। 2007 में जब हिंडालको ने खनन के लिए सड़क निर्माण का काम शुरु किया तब वहां के स्थानीय आदिवासियों ने इस खनन का विरोध करना शुरु किया। उस समय हिंडालकों ने स्थानीय आदिवासियों से वादा किया था कि वह वहां के युवकों को के लिए 105 रोजगार उपलब्ध करवाएगा। वर्ष 2014 में स्थानीय आदिवासियों पर हुए कंपनी के गुंडों तथा पुलिस के हमले के बाद आदिवासियों ने विरोध स्वरूप खनन का काम बंद करवा दिया। तब से ही हिंडालको का खनन का काम यहां पर पूरी तरह से बंद है तथा हिंडालको के खिलाफ क्षेत्र में एक मजबूत संघर्ष चल रहा है। आदिवासियों का कहना है कि वह किसी भी सूरत में माली पर्वत पर खनन नहीं होने देंगे।
अपने पर्वत की सुरक्षा के लिए यहां के आदिवासिय हर वर्ष एक प्राकृतिक सुरक्षा समावेश का आयोजना करते हैं जहां पर आस-पास के क्षेत्रों के सभी छोटे-बड़े संघर्ष एकजुट होकर अपने परिवेश तथा पर्वत की सुरक्षा का संकल्प दोहराते हैं। इसी क्रम में 18 जनवरी 2017 को माली पर्वत सुरक्षा समिति के बैनर तले एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। इस जनसभा में 4000 आदिवासियों ने भागीदारी की। जनसभा को संबोधित करने के लिए देश के विभिन्न भागों से सामाजिक कार्यकर्ता तथा नेतृत्वकारी साथी भी पहुंचे। जनसभा की अध्यक्षता वरिष्ठ गांधीवादी तथा जनसंघर्षों के अग्रणी कार्यकर्ता डॉ. जी.जी. पारिख ने की।
जनसभा में स्थानीय कार्यकर्ताओं ने आंदोलन की स्थिति का वर्णन करते हुए मौजूदा हालात तथा आगे की रणनीति पर बात रखी। माली पर्वत सुरक्षा समिति के निरंजन खलों ने कहा कि हिंडालको द्वारा किया जा रहा खनन हमारा पानी, सब्जी खेती सबकुछ नष्ट कर देता। अपने पर्वत की सुरक्षा के लिए हमने 2003 से ही इस खनन के खिलाफ संघर्ष छेड़ रखा है। इस संघर्ष के दौरान हमारे कई साथियों पर पुलिस, प्रशासन तथा कंपनी के गुंडों द्वारा कई तरीकों से दमन के प्रयास किए गए तथा हमें फर्जी मुकदमों में फंसाया गया है। लेकिन इस सबके बावजूद हम अपने पर्वत पर खनन देंगे दुबारा शुरु नहीं होने देंगे।
माली पर्वत सुरक्षा समिति के सदानंद पुजारी ने बताया कि हिंडाल्को कंपनी द्वारा किया जा रहा खनन यहां के 42 गांवों के आदिवासियों की आजिविका तथा रहन-सहन को प्रभावित कर रहा था। इस खनन के खिलाफ हमने कलेक्टर, तहसीलदार के कार्यालयों पर कई बार विरोध-प्रदर्शन किया तथा खनन रोकने के लिए ज्ञापन दिया। वर्ष 2014 में कंपनी के गुंडों द्वारा किए गए हमले के बाद से ही हमने यहां पर खनन का काम पूरी तरह से वंद करवा दिया है।
माली पर्वत सुरक्षा समिति के सचिव पूर्णों जानी (25) ने 2014 के घटनाक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि 8 जनवरी 2014 को लगभग 500 आदिवासियों ने बॉक्साइट ले जा रही 50-60 गाड़ियों को रोक दिया। 9 जनवरी को हो रहे धरना प्रदर्शन पर तहसीलदार ने आकर गाड़ियों को छोड़ देने के लिए कहा जिसे लोगों ने नहीं माना। 9 जनवरी की रात कंपनी के कुछ गुंडों ने धरने पर समान लेकर आ रहे 5 युवकों को रोक कर उनके साथ मार-पीट की। इस घटना से क्षेत्र के आदिवासियों में भारी रोष छा गया और उन्होंने 10 जनवरी को 10000 की संख्या में एकत्रित होकर गाड़ियों को तोड़ दिया। हिंडाल्कों के कार्यलाय में भी तोड़-फोड़ की तथा उनके कर्मचारियों को वहां से भगा दिया। तब से ही खनन का काम रुका पड़ा है। 10 जनवरी के प्रदर्शन में शामिल सैकड़ों लोगों पर कई तरह के फर्जी मुकदमे लगा दिए गए हैं। कंपनी द्वारा साजिशन गांव के 14 युवकों पर माओवादी होने का आरोप भी लगाया गया जिस पर पुलिस ने केस दर्ज कर इन युवकों पर मोअवाद का फर्जी मुकदमा दायर कर दिया।
पूर्णों जानी आगे कहते है कि माली पर्वत सुरक्षा समिति ने अब अपना संघर्ष का दायरा भी बढ़ा दिया है। 3 अगस्त 2016 को 5 आदिवासियों की माओवादी के नाम पर फर्जी इनकाउंटर के विरोध में कोरापुट बंद का आह्वान किया गया। फर्जी केसों और खनन के साथ-साथ अब माली पर्वत सुरक्षा समिति आदिवासियों से जुड़े अन्य मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, मनरेगा, रोजगार, राज्य दमन इत्यादि के इर्द-गिर्द भी संघर्ष विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
सभा के अध्यक्ष डा. जी.जी पारिख ने कहा कि कोरापूट के आदिवासियों का संघर्ष न सिर्फ उनके पर्वत को बचाने का संघर्ष है बल्कि यह पूरे देश में चल रहे संघर्षों के लिए एक मिसाल है। यह संघर्ष एक नया विचार, एक नया दर्शन लेकर आएगा जो पूरे देश के संघर्षों को अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई में मार्गदर्शन करेगा। उन्होंने कहा कि माली पर्वत सुरक्षा समिति की अब यह जिम्मेदारी है भी है कि वह अपने संघर्ष के साथ-साथ अन्य संघर्षों की भी सहायता करे।
लोकशक्ति अभियान से प्रफुल्ल सामंत्रा ने भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि भारत सरकार इस समय पूरी तरह से कॉर्पोरेट समर्थित सरकार की तरह काम कर रही है और आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में यह बहुत जरूरी है कि हम अपने संघर्षों को एकजुट करें और उन्हें एक मजबूत संगठन के तहत संगठित करें। उन्होंने माली पर्वत सुरक्षा समिति के नेतृत्व के तहत चल रहे खनन विरोधी आंदोलन में आदिवासियों के जोशो-खरोश की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें अपनी इस ताकत को एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार करना है।
पश्चिमी उड़ीसा कृषक संगठन से लिंगराज प्रधान ने कहा कि उड़ीसा का हर एक कोना अपार संपदा से भरा पड़ा है। इसके पर्वतों में जो खनिज दबा पड़ा है वही कंपनियों को यहां आकर्षित करता है और उसका नतीजा निकलता है आदिवासियों के विस्पाथन में। किंतु आदिवासी इसके खिलाफ हर जगह लड़ रहे हैं और उन्हें अपने संघर्षों में सफलता भी मिल रही है। नियामगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासी जिन्हें उड़िया भाषा तक नहीं आती है वह वेंदाता जैसे विशालकाय उद्यम से सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति और एकता के दम पर रोक रखा है।
नियामगिरी की तरह ही उड़ीसा के अन्य भागों में भी आदिवासी अपने जंगल-जमीन और आजिविका के लिए लड़ रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं। माली पर्वत की सुरक्षा का संघर्ष भी ऐसा ही एक बहादुराना संघर्ष है जिसे अभी एक लंबी लड़ाई लड़नी है।
नियामगिरी सुरक्षा समिति से लिंगराज आजाद ने नियामगिरी के संघर्ष का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह से नियामगिरी के आदिवासियों ने अपने संगठन के दम पर वेदांता को वहां आने से रोक रखा है उसी तरह हर आदिवासी समुदाय को अपने जंगल और जमीन की रक्षा के लिए मजबूत और एकताबद्ध संघर्ष खड़े करने होंगे। उन्होंने कहा कि हमें अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए अलग-अलग चल रहे संघर्षों को एकजुट करना होगा।
मशहूर गांधीवादी नेत्री मंजू मोहन ने कहा कि आदिवासियों के संघर्षों में उनकी महिलाओं की भूमिका प्रसंशनीय है जो अपने घर को संभालने के साथ-साथ अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए लड़ रही हैं।
पूर्व केंद्रीय इस्तापत मंत्री ब्रज किशोर त्रिपाठी ने कहा कि मौजूदा भारत सरकार की समस्त नीतियां कॉर्पोरेट हितों के लिए बन रही हैं। वह कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ाने के लिए आदिवासियों को उनके जंगल और जमीन से विस्थापित कर रही है। किंतु आदिवासी इस अन्याय और उत्पीड़न का अपने संघर्षों के दम पर पुरजोर मुकाबला कर रहे हैं।
सभा का संचालन माली पर्वत सुरक्षा समिति के युवा नेता सदानंद पुजारी ने किया। सभा में स्थानीय युवकों ने अपनी संस्कृति का परिचय देते हुए एक आदिवासी नृत्य भी प्रस्तुत किया। सभा में आए वक्ताओं का स्वागत तथा धन्यवाद माली पर्वत सुरक्षा समिति के सचिव पुर्णो माली ने किया।
माली पर्वत सुरक्षा समिति के सदानंद पुजारी ने बताया कि हिंडाल्को कंपनी द्वारा किया जा रहा खनन यहां के 42 गांवों के आदिवासियों की आजिविका तथा रहन-सहन को प्रभावित कर रहा था। इस खनन के खिलाफ हमने कलेक्टर, तहसीलदार के कार्यालयों पर कई बार विरोध-प्रदर्शन किया तथा खनन रोकने के लिए ज्ञापन दिया। वर्ष 2014 में कंपनी के गुंडों द्वारा किए गए हमले के बाद से ही हमने यहां पर खनन का काम पूरी तरह से वंद करवा दिया है।
माली पर्वत सुरक्षा समिति के सचिव पूर्णों जानी (25) ने 2014 के घटनाक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि 8 जनवरी 2014 को लगभग 500 आदिवासियों ने बॉक्साइट ले जा रही 50-60 गाड़ियों को रोक दिया। 9 जनवरी को हो रहे धरना प्रदर्शन पर तहसीलदार ने आकर गाड़ियों को छोड़ देने के लिए कहा जिसे लोगों ने नहीं माना। 9 जनवरी की रात कंपनी के कुछ गुंडों ने धरने पर समान लेकर आ रहे 5 युवकों को रोक कर उनके साथ मार-पीट की। इस घटना से क्षेत्र के आदिवासियों में भारी रोष छा गया और उन्होंने 10 जनवरी को 10000 की संख्या में एकत्रित होकर गाड़ियों को तोड़ दिया। हिंडाल्कों के कार्यलाय में भी तोड़-फोड़ की तथा उनके कर्मचारियों को वहां से भगा दिया। तब से ही खनन का काम रुका पड़ा है। 10 जनवरी के प्रदर्शन में शामिल सैकड़ों लोगों पर कई तरह के फर्जी मुकदमे लगा दिए गए हैं। कंपनी द्वारा साजिशन गांव के 14 युवकों पर माओवादी होने का आरोप भी लगाया गया जिस पर पुलिस ने केस दर्ज कर इन युवकों पर मोअवाद का फर्जी मुकदमा दायर कर दिया।
पूर्णों जानी आगे कहते है कि माली पर्वत सुरक्षा समिति ने अब अपना संघर्ष का दायरा भी बढ़ा दिया है। 3 अगस्त 2016 को 5 आदिवासियों की माओवादी के नाम पर फर्जी इनकाउंटर के विरोध में कोरापुट बंद का आह्वान किया गया। फर्जी केसों और खनन के साथ-साथ अब माली पर्वत सुरक्षा समिति आदिवासियों से जुड़े अन्य मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, मनरेगा, रोजगार, राज्य दमन इत्यादि के इर्द-गिर्द भी संघर्ष विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
सभा के अध्यक्ष डा. जी.जी पारिख ने कहा कि कोरापूट के आदिवासियों का संघर्ष न सिर्फ उनके पर्वत को बचाने का संघर्ष है बल्कि यह पूरे देश में चल रहे संघर्षों के लिए एक मिसाल है। यह संघर्ष एक नया विचार, एक नया दर्शन लेकर आएगा जो पूरे देश के संघर्षों को अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई में मार्गदर्शन करेगा। उन्होंने कहा कि माली पर्वत सुरक्षा समिति की अब यह जिम्मेदारी है भी है कि वह अपने संघर्ष के साथ-साथ अन्य संघर्षों की भी सहायता करे।
लोकशक्ति अभियान से प्रफुल्ल सामंत्रा ने भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि भारत सरकार इस समय पूरी तरह से कॉर्पोरेट समर्थित सरकार की तरह काम कर रही है और आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में यह बहुत जरूरी है कि हम अपने संघर्षों को एकजुट करें और उन्हें एक मजबूत संगठन के तहत संगठित करें। उन्होंने माली पर्वत सुरक्षा समिति के नेतृत्व के तहत चल रहे खनन विरोधी आंदोलन में आदिवासियों के जोशो-खरोश की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें अपनी इस ताकत को एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार करना है।
पश्चिमी उड़ीसा कृषक संगठन से लिंगराज प्रधान ने कहा कि उड़ीसा का हर एक कोना अपार संपदा से भरा पड़ा है। इसके पर्वतों में जो खनिज दबा पड़ा है वही कंपनियों को यहां आकर्षित करता है और उसका नतीजा निकलता है आदिवासियों के विस्पाथन में। किंतु आदिवासी इसके खिलाफ हर जगह लड़ रहे हैं और उन्हें अपने संघर्षों में सफलता भी मिल रही है। नियामगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासी जिन्हें उड़िया भाषा तक नहीं आती है वह वेंदाता जैसे विशालकाय उद्यम से सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति और एकता के दम पर रोक रखा है।
नियामगिरी की तरह ही उड़ीसा के अन्य भागों में भी आदिवासी अपने जंगल-जमीन और आजिविका के लिए लड़ रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं। माली पर्वत की सुरक्षा का संघर्ष भी ऐसा ही एक बहादुराना संघर्ष है जिसे अभी एक लंबी लड़ाई लड़नी है।
नियामगिरी सुरक्षा समिति से लिंगराज आजाद ने नियामगिरी के संघर्ष का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह से नियामगिरी के आदिवासियों ने अपने संगठन के दम पर वेदांता को वहां आने से रोक रखा है उसी तरह हर आदिवासी समुदाय को अपने जंगल और जमीन की रक्षा के लिए मजबूत और एकताबद्ध संघर्ष खड़े करने होंगे। उन्होंने कहा कि हमें अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए अलग-अलग चल रहे संघर्षों को एकजुट करना होगा।
मशहूर गांधीवादी नेत्री मंजू मोहन ने कहा कि आदिवासियों के संघर्षों में उनकी महिलाओं की भूमिका प्रसंशनीय है जो अपने घर को संभालने के साथ-साथ अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए लड़ रही हैं।
पूर्व केंद्रीय इस्तापत मंत्री ब्रज किशोर त्रिपाठी ने कहा कि मौजूदा भारत सरकार की समस्त नीतियां कॉर्पोरेट हितों के लिए बन रही हैं। वह कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ाने के लिए आदिवासियों को उनके जंगल और जमीन से विस्थापित कर रही है। किंतु आदिवासी इस अन्याय और उत्पीड़न का अपने संघर्षों के दम पर पुरजोर मुकाबला कर रहे हैं।
सभा का संचालन माली पर्वत सुरक्षा समिति के युवा नेता सदानंद पुजारी ने किया। सभा में स्थानीय युवकों ने अपनी संस्कृति का परिचय देते हुए एक आदिवासी नृत्य भी प्रस्तुत किया। सभा में आए वक्ताओं का स्वागत तथा धन्यवाद माली पर्वत सुरक्षा समिति के सचिव पुर्णो माली ने किया।
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