आदिवासियों की जमीन हड़पने के लिए हुए कानूनों में संशोधन के खिलाफ एकताबद्ध झारखंडी आवाम


23 नवम्बर 2016 को झारखंड में भाजपा सरकार द्वारा सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टेनेंसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में प्रस्तावित संशोधनों को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई। इस मंजूरी ने पूरे झारखंड राज्य में एक आग सी लगा दी है। स्थानीय निवासियों और आदिवासियों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों से साफ स्पष्ट है कि झारखंड की आम जनता को यह संशोधन मंजूर नहीं है और वह किसी भी कीमत पर अपने जंगल और जमीन को कॉर्पोरेट ताकतों के हाथ में नहीं जाने देगी। आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं. गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है. आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है। हम यहां आपके साथ इस पूरे मामले पर झारखंडी आवाज  से  रिपोर्ट साझा कर रहे है;

झारखंड की आदिवासी आबादी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाजपा सरकार उनकी जमीन हड़पकर कॉरपोरेट घरानों को सौंपना चाह रही है। यह संदेश भाजपा विरोधी राजनीतिक ताकतों ने पहुंचाया है।

उन्हें ऐसा करने का मौका स्वयं राज्य सरकार ने 03 मई 2016 को दे दिया था जब सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टिनेसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में संशोधन का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर किया गया।

सरकार की नीयत पर शक

ये कानून राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को बाहरी लोगों के लालच से बचाने के लिए बनाए गए थे।

इसके तहत जमीन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी है।

यह कानून संविधान की नौंवी सूची में शामिल है, यानी इसकी समीक्षा नहीं हो सकती। बिना व्यापक विचार-विमर्श के ऐसे कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रयास सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है।

राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी बिना किसी संकोच के 28 जून 2016 को अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया। हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे सलाह के लिए केंद्र को लौटा दिया। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 06 सितंबर को राष्ट्रपति से इसे मंजूर न करने की सिफारिश की।

बावजूद इसके, 23 नवंबर-16 को विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों को मात्र तीन मिनट में विधानसभा से पारित करा कर अपनी मंशा और साफ कर दी।

जबरदस्त नाराजगी

इसके बाद आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं। गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है। आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है।

असंतोष की एक झलक 25 नवंबर को संशोधनों के खिलाफ 'झारखंड बंद' के दौरान दिखा जब 10 से ज्यादा वाहन जला दिए गए और करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया।

आदिवासी बहुल संताल में तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और उनपर तीर से हमले किए गए। दुमका में कॉलेज हॉस्टल से करीब 25 हजार तीर, धनुष व परंपरागत हथियार जब्त किए गए।

कैसे बना था यह कानून

सीएनटी उस समय अस्तित्व में आया था जब तमाम तरह के दमनात्मक हथकंडों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि इस इलाके को अपने अधीन बनाए रखना मुश्किल है।

इसलिए 'एक हाथ दो एक हाथ लो' की नीति पर अंग्रेज हुकूमत ने बिरसा के शहीद होने के महज आठ साल के भीतर इस विशेष कानून के तहत स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान किए। बदले में यह आशा की गई कि आदिवासी अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार करेंगे।

क्यों हो रहा है विरोध?

एक्ट में संशोधन आदिवासियों के हित में होने के सरकारी दावे के बावजूद विरोध की वजह को कानून के विशेषज्ञ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने विस्तार से समझाया।

क्षेत्र विशेष के लिए बनाए गए इस खास सीएनटी एक्ट के सेक्शन 21, सेक्शन-49(1)(2) व सेक्शन 71(ए) में और इसी के अनुरूप एसपीटी के सेक्शन-13 संशोधन किए गए हैं. वर्तमान कानून आदिवासियों की कृषियोग्य भूमि पर ही लागू है।

सेक्शन-21 में संशोधन के द्वारा उसके गैरकृषि इस्तेमाल को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को दी गई है। कहा गया है कि सीएनटी के लागू रहने के बावजूद सरकार जमीन के गैरकृषि उपयोग के लिए नियम बनाएगी।

समय-समय पर राज्य सरकार इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी। यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार गैरकृषि लगान थोप सकती है।

संशोधन विरोधी आशंका जता रहे हैं कि ऐसा होने पर सरकारों को जमीन का उपयोग बदलने की असीमित ताकत मिल जाएगी। एकबार ऐसा हो गया तो उक्त जमीन सीएनटी-एसपीटी एक्ट से बाहर हो जाएगी। ऐसा होते ही आदिवासियों को बेदखल करना आसान हो जाएगा।

पूर्व में हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से ऐसे कई फैसले आए हैं जिनमें उपयोग बदल जाने के बाद उसे सीएनटी-एसपीटी के तहत प्राप्त विशेष सुरक्षा से बाहर माना गया है।

गले नहीं उतर रहा सरकारी दावा

इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए सरकार ने बाद में यह प्रोविजन जोड़ दिया है कि उपयोग बदलने के बावजूद मालिकाना जमीन मालिक का ही रहेगा। पर, यह कैसे संभव होगा इसे बताया नहीं गया है।
राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तो इसे सीधा-सीधा सरकार का झूठ मानते हैं। कहते हैं ' यह भाजपा का वैसा ही झूठ है जैसा कश्मीर में धारा-370 हटाने और बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए वह बोलती रही है। मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं भी वहीं से निकला हूं'।

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