इस पूंजीवादी-साम्राज्यवादी-फ़ासीवादी लुट का विरोध करे..
‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक इन गडचिरोली’ के झूठे वादों का और अमीर कंपनियों की दलाली करने वाले नीतियों का विरोध करे...
सिर्फ एक-दो को रोजगार के झूठे वादों में फ़सने की जगह स्थानिक संसाधनों पर आधारित पर्यावरण पूरक रोजगार निर्माण के लिए संघर्ष करे...
पर्यावरण की रक्षा कर.. शास्वत रोजगार निर्माण कर... ग्रामसभायों के अधिकार को मजबूत बनाये...
जल, जंगल, जमीन और संसाधनों के अधिकार के संघर्ष को मजबूत करे..
आदिवासी, दलित, मजदुर, किसान केंद्रित विकास प्रक्रिया के लिए ‘जन विकास मॉडल’ को मजबूत बनाये..
पिचले कही सालों से सरकार निजी कंपनियों द्वारा गडचिरोली के सुरजागड, आगरी-मसेली, बांडे, दमकोंडवाही आदि जगहों पर लोह खनन चालू करने के प्रयास कर रही है. जिसका स्थानिक जनता जोरदार विरोध कर रही है. लोगो को बहकाने की, उन्हें खरीदने की हर एक कोशिश विफल होती देख विरोध करती जनता पर दमन किया जा रहा है. लोग समझके संगठित न हो पाए इसीलिए दलाल जनप्रतिनिधियों द्वारा लोगो को गुमराह किया जा रहा है. ‘मेक इन गडचिरोली’ के जुमले तले लोगो को झूट-मुठ के ट्रेनिंग देके लोह खनन का रास्त्ता साफ करने का प्रयास यहाँ के प्रतिनिधि कर रहे है.
गडचिरोली जिल्हे में प्रस्तावित सभी लोह खनन परियोजना में सचमे कितना रोजगार निर्मित होगा इसकी बात लोगोसे छुपाकर, ‘तुम्हे रोजगार मिलेगा, तुम्हारा विकास होगा..’ ऐसे जुमले नारे लगाकर आदिवासियों के साथ साथ गैर-आदिवासी युवायों को फसाकर उन्हें खनन के समर्थन में उतारने की साजिश सत्ताधारी कर रहे है. हमें ये स्पष्ट होना चाहिए की इन्ह खनन से स्थानिको को कोई भी स्थायी रोजगार मुहैया नहीं होगा.
महाराष्ट्र में गडचिरोली जिल्हे का ‘सुरजगड़ क्षेत्र’ ७० गावो से बना हुआ पारंपरिक क्षेत्र है. शेकडो सालो से इस क्षेत्र में ग्रामसभाए सामूहिक, सांस्कृतिक, धार्मिक रूप से एक दुसरे से जुडी हुयी है. आदिवासी एवं अन्य निवासी इस वन व्याप्त क्षेत्र, पर्यावरण की रक्षा करते आये है. वनों की रक्षा द्वारा वन आधारित शास्वत उपजीविका के स्त्रोतों को स्थानिक जनता बढ़ावा दे रही है. जनता के बड़े शंघर्ष के बाद निर्मित पेसा और वन अधिकार कानूनों के प्रावधानों का अमल कर स्वशासन एव स्वनिर्णय प्रक्रिया से ग्रामसभाए जल, जंगल, जमीन पर अपने हक़ को मजबूती दे रहे है. लघु वन उपजो की बिक्री से ग्रामसभायों और स्थानिक लोगों के आमदनी में बहोत इफाजा हुआ है. और जनता अपने शास्वत विकास की और बढ़ रही है, यैसे में जनता के संसाधनों को उन्हके हाथ से छिन लेना ये इस व्यवस्था द्वारा उन्हके ऊपर की गयी हिंसा ही है.
सुरजगड़ में खनन की वास्तविकता....
- सुरजगड़ पहाड़ पे स्थानिक आदिवासियों का पेन यानि ठाकुर देव का स्थान है. यहा के आदिवासी एवं सुरजगड़ क्षेत्र की सभी ग्रामसभाए ठाकुर देव की परंपरागत पूजा के लिए साल में बहोत बार इस पहाड़ क्षेत्र में इकट्टा होते है. हर साल जनवरी के महीने में बहोत बड़ी यात्रा होती है. और ये कई सालो से चलता आ रहा त्यौहार है. दमकोंडवाही के पहाड़ पे भी स्थानिक आदिवासियों के भगवान है. उस पहाड़ पर बैठी ‘मराई छेड़ो ये क्षेत्र की माता समान है. आज इन्ह खनन के वजह से हमारे परंपरागत पूजा स्थल खतरे में है. सरकार ने हम आदिवासियों और इस क्षेत्रों के पूजा स्थलों की नीलामी शुरू की है. स्थानिक जनता इसे कभी भी बर्दास्त नहीं करेगी.
- पेसा और वन अधिकार कानून के प्रावधानों को नजरअंदाज कर ग्रामसभायों के अधिकार के वन क्षेत्र को छिना जा रहा है. पेसा कानून के तहत अनुसूचित क्षेत्रपर ग्रामसभायों के अधिकार होते हुए भी ग्रामसभाए नहीं ली गयी. हजारो हेक्टर सामूहिक वन अधिकार के दावे अभीभी प्रलंबित है. हजारो हेक्टर वन क्षेत्र खैरात में निजी कंपनियों को बाटा जाना ये सीधे-सीधे पेसा और वन अधिकार कानून उलंघन है.
- पूंजीवादी विकास और तथाकथित रोजगार के नाम पर हजारों लोगो का रोजगार ख़तम किया जा रहा है. यानी आज चल रहा हजारों लोगो का रोजगार छिन कर सिर्फ कुछ लोगो को तथाकथित रोजगार क्या ये विकास है? इन्ह लुट की परियोजनायों से न तो विकास होगा, ना ही रोजगार मिलेगा, सिर्फ होगी- लुट ही लुट.
- महेश राउत,
इज्जत से जीने का अधिकार अभियान,
एवं
केंद्रीय संयोजन समिति, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन
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