24 अगस्त को राजघाट में भूमि आवास आजीविका अधिकार महासम्मेलन







नर्मदा घाटी के आदिवासी, किसानों ने अब ठानी है, शासकों की साजिश हमने जानी है।

बडवानी तहसील के बोरखेडी से लेकर करीब हर आदिवासी गांव में, जमीन की पात्रता होते हुए भी, दलालों, अधिकारियों से फर्जी रजिस्ट्रयों में फंसाये गये या जमीन के बदले जमीन न देने , नगद पैकेज  की एक किश्त पाकर उससे जमीन खरीद नहीं पाये, फंस गये हैं  परिवार। आदिवासियों को पुनर्वास नीति (म.प्र.) की कंडिका 5.1 अनुसार जमीन या किसी भी लाभ के बदले पैसा देना है, तो जिलाधीश की मंजूरी जरूरी है। जिलाधीश को मंजूरी देने के पहले यह जाॅचना जरूरी है कि कहीं नगद पैसा देने से उस आदिवासी परिवार के जीवनस्तर में गिरावट तो नहीं आएगी? मैदानी हकीकत यह कि तीन प्रभावित राज्यों में से केवल म.प्र. ने जमीन देना पूर्णतः नकारकर या शासकीय, पडत, बंजर जमीन से भी कोई अनुपयोगी जमीन विस्थापित परिवारों को एकतरफा आवंटित करके उन्हें पेकेज लेने को मजबूर किया और आदिवासी ही क्या, हर तबके के किसानों को फँसाया। आदिवासियों के बारे में तो सरासर कानून का उल्लंघन हुआ है। मोरकट्टा हो या पिछोडी, ऐसे उदाहरण सामने लाकर, आंदोलन की याचिका में 2008 से बने न्या. झा आयोग से 3536 रजिस्ट्रियाँ की जाॅच में ये भी शामिल है। अंदाजा है कि 2000 से 2500 तक  फर्जी रजिस्ट्रियां निकलेंगी। लेकिन सही संख्या का खुलासा अक्टूबर तक आने वाली झा आयोग की रिपोर्ट से ही पता चलेगा। 
घर-प्लॅाटों में भ्रष्टाचार का नया नमूना भी सरदार सरोवर विस्थापितों को वंचित करने की हकीकत सामने ला रहा है। जबकि एन.वी.डी.ए. (नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण म.प्र.) के नाम पर आज भी वह जमीन है, जो विस्थापित परिवारों को आवंटित की गई लेकिन पट्टा न देते हुए केवल आवंटन पत्र ही उन्हें दिया गया। लेकिन सामने यह बात आयी है कि कुछ बसाहटों के घर-प्लाटस् न केवल बेचे गये हैं, लेकिन इनकी रजिस्ट्रियाॅं भी गैरविस्थापितों के नाम हो चुकी है। इस घर-प्लाॅट/भूखण्डों की बिक्री गैरविस्थापितों को कर दिए जाने से स्पष्ट हुआ कि दलाल क्या-क्या कर सकते हैं? पंजीयन और राजस्व ही नहीं,एन.वी.डी.ए. भी इसमें शामिल हुआ। इन तीनों विभागों के संगठित फर्जीवाड़े से हजारों विस्थापितों को बेघर करने की साजिश का खुलासा हुआ है। प्रभावितों के हकों की आहुति देकर भ्रष्टाचारी, लाखों क्या, करोडों की कमाई कर रहें है। 
राजघाट में ‘‘जीवन अधिकार सत्याग्रह‘‘ पर हरेक विस्थापित अपने अधिकार को जानकर, कागज पत्रों की जाॅच के साथ शासन को न केवल आवेदन दे रहे है, बल्कि आवाज भी उठा रहे है। 
24 अगस्त को नर्मदा घाटी की आवाज में आवाज मिलाने पहुॅचेगे देशभर के आंदोलनकारी, जिनमें  शामिल हैं स्वराज अभियान और जय किसान आंदोलन के योगेन्द्र यादवजी, केरल की आदिवासी नेता सी.के.जानू, ओडि़सा के पर्यावरणवादी प्रफुल्ल सामन्तरा, बिहार के जन जागरण संगठन की मजदूर नेता कामायनी बहन, महाराष्ट्र के जुझारू किसान-मजदुर नेता मानव कांबळे व मारूति भापकर, बरगी व नर्मदा घाटी की कई परियोजनाओं में संघर्ष का नेतृत्व करने वाले राजकुमार सिन्हा, उत्तर प्रदेश की जन आंदोलनकारी अरूंधति धुरू, तमिलनाडू की अंसगठित श्रमिक संगठन की कार्यकर्ता ग्रॅब्रिएला बहन आदि। इनमें और मान्यवरों के नाम जुडते जाएंगे। भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव लाने की नरेन्द्र मोदी शासन की साजिश को रोकने में जिनका योगदान है, ऐसे जन आंदोलन, 30 साल से संघर्षत् नर्मदा बचाओं आंदोलन को बल देंगे।
राजघाट (बडवानी) में नर्मदा का जलस्तर अभी तो 122 मी. पर स्थिर है। लेकिन अचानक अपना रूप बदलने वाली यह नर्मदा माता  अगर इस बरसात में पानी चढाकर चुनौती देगी, तो आंदोलन के समर्पित  दल भी उससे टकराएंगे, इसी संकल्प का माहौल राजघाट में है।


Share on Google Plus

Unknown के बारे में

एक दूसरे के संघर्षों से सीखना और संवाद कायम करना आज के दौर में जनांदोलनों को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। आप अपने या अपने इलाके में चल रहे जनसंघर्षों की रिपोर्ट संघर्ष संवाद से sangharshsamvad@gmail.com पर साझा करें। के आंदोलन के बारे में जानकारियाँ मिलती रहें।
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें