सुनवाई की शुरूआत में ही डॉ. हरीश सालवे ने जोर देकर कहा कि मेधा पाटकर जी को याचिका कर्ता बनने का कानूनी अधिकार क्या है? उन्होंने कई आरोप लगाते हुए 2011 के आंकारेश्वर बांध विस्थापितों की याचिका में दिये फैसले को आधार लेकर आंदोलन को याचिकाकर्ता के रूप में स्वीकार न करने का आग्रह रखा। उन्होंने कहा कि ये बांध विरोध लोग हैं और इनकी कानूनी कार्रवाई भी इसी कारण है। अॅटर्नी जनरल भी इन मुद्दों पर जोर देकर फिर बहर आगे बढानते गये। लेकिन आखिर में न्यायपीठ ने प्रथम डॉ. संजय पारेख जी और फिर मेधा पाटकर की सुनवाई की। विस्थापितों की समस्याएं सुलझाने के ऊपर उन्होंने अपना समय और दिशा केन्द्रित किया।
बहस में शासन की ओर से स. सरोवर से पानी की जरूरत और विकास का नजरिया रखा और कहा कि जब हम पुनर्वास के लिए सब कुछ बिसा है और कर रहे हैं, शासन की पूरी यंत्रणा शिकायत निवारण प्राधिकरण आदि सुन रहे हैं और आंदोलन ही जानबूझकर सैकड़ों नये और मुद्दे खड़े करने में लगे हुए हैं.....पुनर्वास में भरपाई, मुआवजा के अलावा हर सुविधा, बसाहटें देते आये हैं। याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय में नहीं आना चाहिए।
जवाब में डॉ. संजय पारिख जी ने पूरी हकीकत- आंकड़ों और वस्तुस्थिति के साथ पेश करते हुए न्यायाधीशों को अवगत कराया कि महाराष्ट्र के शिकायत निवारण प्राधिकरण के विपरीत राय के बावजूद तथा म. प्र. में न्या. एस.पी. खरे (शि.वि.प्रा.) की राय भी न लेते हुए मा. सर्वोच्च अदालत के पूर्व फैसले-2000 और 2005 के विरूद्ध बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय लिया गया, जबकि बांध की वर्तमान ऊंचाई 122 मी. के नीचे भी हजारों किसानों, मजदूरों, मछुआरों का वैकल्पक जमीन आजीविका एवं बसाहटों में सभी सुविधाओं के साथ बाकी है। भ्रष्टाचार की जांच 6 सालों से चलते हुए इसी साल न्या. झा. द्वारा पेश होना अपेक्षित है जिससे भी ‘पुनर्वास’ का पर्दाफाश होगा।
अदालत ने स्वीकार किया कि शासन आंदोलन विस्थापितों के द्वारा प्रस्तुत वस्तुस्थिति में बहुत अंतर होने के कारण जरूरी है कि तीनों राज्यों में भूतपूर्व न्यायाधीशों-शिकायत निवारण प्राधिकरणों तथा पुनर्वास की ‘समीक्षा एव मूल्यांकन’ के लिए जिम्मेदार संस्थाओं से वास्तविक पुनर्वास के संबंध में रिपोर्ट मांगा जाय। इस संबंध में खंडपीठ ने भारत सरकार और तीनों राज्यों के अधिवक्ताओं को आदेश दिया कि अग्रिम बुधवार तक महाराष्ट्र में और गुजरात में 2 न्यायाधीश हों, जो शिकायत निवारण के लिए जिम्मेदार होंगे। म.प्र. के शि.नि.प्रा. में 5 सदस्य जरूरी हैं। चूंकि राज्यों ने ही न्यायालय में स्वीकार किया कि आज भी सैकड़ों आवेदन लंबित हैं। अगली सुनवाई 16 जनवरी को रखी है।
कमला यादव बिलाल खात भगीरथ
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