कला पर बंदिश के खिलाफ उठी आवाजें

झूठे मुकदमे में फंसाए गए ‘कबीर कला मंच’ की कलाकारों की रिहाई की मांग को लेकर 2  मई को श्रीराम सेंटर-मंडी हाउस से संगवारी, संगठन, द ग्रुप (जन संस्कृति मंच) और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के बैनर तले दिल्ली के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों, गायकों, चित्रकारों, फिल्मकारों, रंगकर्मियों, गायकों, पत्रकारों, छात्रों और बुद्धिजीवियों ने एक प्रतिवाद मार्च निकाला, जो महाराष्ट्र सदन पहुंचकर सभा में तब्दील हो गया। संस्कृतिकर्मियों की ओर से चित्रकार अशोक भौमिक, फिल्मकार संजय काक, कवि नीलाभ, आलोचक आशुतोष और अध्यापक उमा गुप्ता ने महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री नाम वहां की सरकार के प्रतिनिधि को एक मांगपत्र दिया, जिसमें कबीर कला मंच के कलाकारों- शीतल साठे और सचिन माली तथा मराठी पत्रिका के संपादक सुधीर ढवले पर लादे गए फर्जी मुकदमे को खत्म करने तथा उन्हें अविलंब रिहा करने की मांग की गई है। साथ ही यह भी मांग की गई है कि संस्कृतिकर्मियों पर आतंकवादी या माओवादी होने का आरोप लगाकर उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को बाधित न किया जाए और उनके परिजनों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाए।

संस्कृतिकर्मियों-बुद्धिजीवियों को फर्जी मुकदमों में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की गई है। संस्कृतिकर्मियों-कलाकारों और छात्र-बुद्धिजीवियों ने अगले कदम के रूप में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास कलाकारों और बुद्धिजीवियों की रिहाई के लिए देश भर से हस्ताक्षरित अपील करने का निर्णय किया है। मांगपत्र देने के बाद फिल्मकार संजय काक ने कहा कि सरकार इस भ्रम में न रहे कि अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगाने से कलाकारों की आवाजें बंद हो जाएंगी, कल तक कबीर कला मंच के कलाकारों को पुणे और महाराष्ट्र के लोग जानते थे, आज उनकी आवाज पूरे देश में पहुँच रही है। हममें से कोई डरा-सहमा नहीं है, बल्कि हम अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ते रहेंगे और इस लड़ाई में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करेंगे। 

ज्ञात हो कि पिछले दो साल से महाराष्ट्र में कबीर कला मंच के संस्कृतिकर्मियों पर लगातार दमन जारी है। कबीर कला मंच के जिन सदस्यों को मई 2011 में माओवादी होने का आरोप लगाकर दमनकारी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था, उन्हें हाल में जमानत मिली और हाल ही में विगत 2 अप्रैल को इस मंच के कलाकार शीतल साठे और सचिन माले को भी उसी तरह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि दोनों ने इस आरोप से इनकार किया है और खुद को बाबा साहेब अंबेडकर, ज्योतिबा फुले और भगतसिंह के विचारों का अनुयायी बताया है।

प्रतिवाद मार्च की शुरुआत ‘पलटन’ के कलाकारों ने भगत सिंह तुम जिंदा हो गीत को गाते हुए की। यह वही गीत है जो शीतल साठे की आवाज में काफी मकबूल हुआ है। मार्च और सभा में अस्मिता, संगवारी और इप्टा के कलाकारों ने अपने जनगीतों के जरिए संस्कृतिकर्मियों पर हो रहे हमलों का मुखर प्रतिवाद किया। नारे लगाते और हाथों में कलाकारों के दमन को बंद करने और उन्हें रिहा करने की मांग वाले प्लेकार्ड लिए प्रदर्शनकारी महाराष्ट्र सदन पहुंचे, जहां उन्हें रोक दिया गया। उसके बाद उन्हांेने वहीं सभा की। सभा को संबोधित करते हुए कथाकार-पत्रकार नूर जहीर ने कहा कि सरकारें जनता से कट चुकी हैं, इसलिए वे जनता का साथ देने वाले कलाकारों का दमन करने पर उतारू हैं। कवि नीलाभ ने कहा कि दमन दरअसल पूरी जनता पर हो रहा है और हमें हर दमन का प्रतिरोध करना होगा। रेखा अवस्थी ने जनवादी लेखक संघ की ओर से इस लड़ाई का समर्थन किया। 

अशोक भौमिक ने कहा कि जो स्थितियां इस देश में बन रही है, उसमें कलाकारों, लेखकों और बुद्धिजीवियों को जनता के पक्ष में बड़ी भूमिका निभानी होगी और इस दौरान दमनकारी व्यवस्था से बार-बार टकराना होगा। ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार कष्ट झेल रही जनता का उपहास उड़ाने वाले अपने मंत्रियों की जबान पर तो अंकुश नहीं लगाती, पर शीतल साठे की आवाज पर रोक लगाना उसके लिए जरूरी हो जाता है। कबीर कला मंच के कलाकारों की आवाज जनता को पसंद है, पर जनविरोधी राज्य मशीनरी को उनकी आवाज खतरनाक लग रही है, इसलिए आज यह बेहद जरूरी है कि इस तरह की आवाजें ज्यादा से ज्यादा तेज हों। सभा को आइसा के संदीप और रंगकर्मी लोकेश जैन ने भी संबोधित किया।

प्रतिवाद मार्च और सभा में प्रो. चमनलाल, रंगकर्मी अरविंद गौड़, संगठन के रविप्रकाश, संगवारी के कपिल शर्मा, द ग्रुप के संजय जोशी, संहति के असित दास, छात्र नेता संदीप सिंह, फिल्मकार अजय भारद्वाज, आलोचक गोपाल प्रधान, वैभव सिंह, पत्रकार अंजनी, शिवदास, राधिका मेनन, पर्णल चिरमुले आदि भी शामिल थे। संचालन अवधेश, सुधीर सुमन और संजय जोशी ने किया।

-सुधीर सुमन, राष्ट्रीय सहसचिव, जन संस्कृति मंच, संपर्क: 9868990959
Share on Google Plus

Unknown के बारे में

एक दूसरे के संघर्षों से सीखना और संवाद कायम करना आज के दौर में जनांदोलनों को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। आप अपने या अपने इलाके में चल रहे जनसंघर्षों की रिपोर्ट संघर्ष संवाद से sangharshsamvad@gmail.com पर साझा करें। के आंदोलन के बारे में जानकारियाँ मिलती रहें।
    Blogger Comment
    Facebook Comment

1 टिप्पणियाँ: