डॉ. सुनीलम को उम्रकैद पर आंदोलन की रणनीति के सम्बन्ध में बैठक

डॉ. सुनीलम को उम्रकैद पर आंदोलन की रणनीति के सम्बन्ध में बैठक 
तारीख: 28 अक्टूबर 2012
समय: शाम 3 बजे से
स्थान: 5, बी.आर. मेहता लेन, (कस्तूरबा गांधी मार्ग के निकट), नई दिल्ली – 110001
मध्य प्रदेश के समाजवादी राजनेता डॉ. सुनीलम को हुई उम्रकैद को जनहित की आवाजों को सत्तावान तबके के पक्ष में दबाने और इसके लिए न्यायपालिका तक को गुमराह करने के दौर की एक अफसोसनाक घटना के रूप में देखा जा रहा है और इस पर व्यापक चिंता व्यक्त की जा रही है. मुलताई कोर्ट में डॉ. सुनीलम और किसान संघर्ष समिति के उनके दो साथियों शेषराव सूर्यवंशी और प्रह्लाद अग्रवाल को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है. प्रशासन ने 66 मामलों में कुल 250 लोगों पर मुकदमे चलाए थे. डॉ. सुनीलम पर इन्स्पेक्टर सरनाम सिंह को मारने की कोशिश करने, एस.एन. कतारे से राइफल छीनने और फायर ब्रिगेड के ड्राइवर धीर सिंह पर पांच बार पत्थरों से हमले करके उनकी ह्त्या करने का इल्जाम है. 


ये सारे आरोप झूठे है. डॉ. सुनीलम, शेषराव सूर्यवंशी और प्रह्लाद अग्रवाल भोपाल जेल में बंद हैं.

भूतपूर्व विधायक और किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष सुनीलम जी ने कई किसान आन्दोलनों का नेतृत्व किया है और WTO के विरोध से लेकर हाल में चले भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन तक में सक्रिय भागीदारी की है. 

जनवरी 12, 1998 का दिन किसान आन्दोलनों के लिए एक काला दिन था. राज्यसत्ता के क्रूर पंजे ने पुलिसिया दमन के बल पर शांतिपूर्ण किसान आंदोलन की बर्बर ह्त्या कर दी थी. एक बड़े षड़यंत्र के तहत मध्यप्रदेश की पुलिस ने गोलियाँ चलें जिसमें  24 किसान मारे गए. इस घटना में पुलिस की गोलियों से 150 किसान घायल भी हुए. बेतुल के किसानों ने सर्किल ऑफिस में 12 दिसंबर 1997 को बाकायदा दी थी और अपने मांग-पत्र में उन्होंने अपनी बर्बाद फसलों के लिए मुआवजे की मांग की थी. लेकिन उनकी मांगे सरकार ने अनसुनी कर दीं. राज्य पुलिस किसानों के प्रति कठोर बनी रही लेकिन 9 जनवरी 1998 को लगभग 75,000 किसानों ने बेतुल में शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन किया. बेतुल के जिलाधिकारी आगे आए और उन्होंने प्रति एकड़ सिर्फ 400 रूपए मुआवजा देना स्वीकार किया. इस क्रूर मजाक से किसानों की भावनाएं आहात हुईं. आक्रोशित किसानों ने 11 जनवरी 1998 को मुलताई तहसील का धेराव किया और सभी 450 गांवों को घेर लिया. यह एक ऐतिहासिक घेराव था. 12 जनवरी, 1998 को किसान नेता डॉ सुनीलम ने तहसील में घुसाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने पहले ही गोली चलाने का निर्णय ले लिया था. डॉ. सुनीलम ने तहसील कार्यालय पहुँच कर बार-बार पुलिस से गोलीबारी रोकने को कहा लेकिन उनकी नहीं सुनी गयी.

समाजकर्मियों को झूठे मुकदमों में फंसाया जाना और सज़ा होना आम बात होती जा रही है. ऐसे मामलों में विचारवान कानूनवेत्ताओं तथा सामाजिक और राजनीतिक लोगों को आगे आना होगा और सार्वजनिक जीवन से आंदोलनों को ऐसे फर्जी मुकदमों के द्वारा कुचलना रोकना होगा. 



Share on Google Plus

Unknown के बारे में

एक दूसरे के संघर्षों से सीखना और संवाद कायम करना आज के दौर में जनांदोलनों को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए जरूरी है। आप अपने या अपने इलाके में चल रहे जनसंघर्षों की रिपोर्ट संघर्ष संवाद से sangharshsamvad@gmail.com पर साझा करें। के आंदोलन के बारे में जानकारियाँ मिलती रहें।
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें