याद किये गये शहीद नियोगी

पिछली 28 सितंबर को नियोगी शहादत दिवस के मौक़े पर कई जगह आयोजन हुए। भोपाल, मुंबई समेत कई जगहों पर आयोजन हुए। छत्तीसगढ़ में भी हुए- छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नाम पर ही तीन आयोजन हुए। इनमें दो भिलाई में हुए- एक किलोमीटर के फ़ासले पर दो जनभाएं। यह आंदोलनों में ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ की बढ़ती प्रवृत्ति का नमूना है। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मज़दूर कार्यकर्ता समिति) इस मायने में बाक़ी दोनों से अलग दिखता है कि वहां सामूहिक नेतृत्व है। बाक़ी दोनों हिस्से अपने नेताओं के नाम से जाने जाते हैं। पेश है जुलूस और जन सभा की भान साहू द्वारा तैयार की गयी वीडियो रिपोर्ट और साथ ही आयोजन की चुनिंदा तसवीरें भी;

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मज़दूर कार्यकर्ता समिति) की ओर से दोपहर एक बजे रावणभाठा (जामुल कैंप) से ढोल-नगाड़े की थाप और शहीद नियोगी की तसवीर के साथ कोई दो हज़ार मज़दूरों का जुलूस निकला और जो छावनी चौक पर पहुंच कर जन सभा में बदल गया। सभा की शुरूआत खैरागढ़ से आये साथियों के बैंड वादन से हुई। संस्कृतिकर्मी कलादास डेहरिया की अगुवाई में उनकी संगीत मंडली ने शहीद नियोगी और शहीद भगत सिंह को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि अर्पित करता गीत प्रस्तुत किया। इस गीत को कलादास ने ही लिखा और स्वरबद्ध किया है।

जन सभा में जिन वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किये, उनमें विष्नु यादव, बंसी साहू, राजकुमार, रमाकांत, कल्याण पटेल, भगवती साहू आदि समेत इलिना सेन भी शामिल थीं। सभी भाषणों का मुख्य सार यही था कि शहीद नियोगी को श्रद्धांजलि देने का मतलब है- समय की चुनौतियों को समझना और संघर्षों को तेज़ करना। पूरे आयोजन के दौरान शहीद नियोगी जी का दिया यह लोकप्रिय नारा गूंजता रहा- हम बनाबो नवी पहिचान, राज करही मज़दूर-किसान।

छावनी चौराहे पर जन सभा

नियोगी चौक पर नियोगी जी की मूर्ति

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मज़दूर कार्यकर्ता समिति) का जुलूस

नियोगी जी को श्रद्धांजलि
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