खनन हादसा मामले में जाँच दल की रिपोर्ट वन, श्रम, राजस्व विभाग व जे.पी. कम्पनी पर आपराधिक मामले की माँग


जे.पी. कम्पनी के मालिकों पर हत्या तथा प्राकृतिक संसाधनों की लूट के आरोप में
मुकदमा दर्ज कराने की मांग

आदिवासियों एवं दलितों के ऊपर लगभग 20 हजार मुकदमे केवल वन विभाग द्वारा किए गए, जिनमें 80 फीसदी महिलाए हैं. लेकिन अवैध खनन एवं जंगलों के अवैध कटान पर माफियाओं, अधिकारियों, कम्पनियों, ठेकेदारो, पुलिस विभाग आदि पर मुकदमे दर्ज नहीं किए जाते...


उ. प्र. राज्य के जिले सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी में शारदा मंदिर स्थित अवैध खनन में 27 फरवरी 2012 को हुई हृदय विदारक घटना की इस अवैध खनन क्षेत्र में 3 मार्च 2012 को राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच के उच्च स्तरीय जांच दल ने एक जांच की। ओबरा स्थित शारदा मंदिर के पीछे 27 फरवरी 2012 को हुई यह दुर्घटना खनन क्षेत्र में सबसे बड़े हादसे के रूप में है जिसमें दर्जनों मजदूरों के मारे जाने की आंशका है।

बिल्ली-मारकुंडी में चल रही कम से कम 300 खदानें लीज समाप्त होने के बाद भी जारी हैं और कई खदानें तो पाताललोक में बदल दी गई हैं, जहां पर 100 फीट से भी ऊपर खनन अभी इस घटना तक जारी था। परिजनों के दबाव पर फिर से राहत कार्य को शुरू किया गया जिसमें एक और शव प्राप्त हुआ है। घटनास्थल से मशीनों को घटना के एक दिन बाद ही हटा दिया गया था, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा जांच के लिए दबाव बनाया गया तब दोबारा से मशीनों को लगाकर फिर से शवों को ढूढ़ने का कार्य शुरू किया गया है।

जाँच दल की सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता रोमा, शांता भटटाचार्य, सोकालोदेवी, विनोद पाठक, रमाशंकर, राधाकांत दिवेदी,पत्रकार विजय विनीत  की ओर से जारी जांच दल रिपोर्ट के मुख्य पहलू और मांगें इस प्रकार हैं:-

  • खदान के अंदर जहां पर पहाड़ दरका था वहां पर प्रशासन द्वारा शवों को निकालने के लिए समुचित कार्यवाही नहीं की जा रही।
  • जिस तरह से पहाड़ दरका है उसे हटाने के लिए बड़ी मशीनों की आवश्यकता है जिसको अभी तक जिला प्रशासन द्वारा नहीं मंगवाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन द्वारा जान-बूझकर इन राहत कार्यो में देरी की जा रही है।
  • कार्य की प्रगति को देखते हुए लग रहा है कि जिला प्रशासन इस मामले को दबाने का प्रयास कर रही है ताकि शव अंदर ही दबे रहें व सच्चाई बाहर न आ सके।
  • उक्त खदान, जहां पर हादसा हुआ है उसकी लीज समाप्त हो चुकी है तथा यह निष्प्रयोज्य हो चुकी हैं लेकिन फिर भी इसमें बड़े पैमाने पर कार्य होता रहा है। इस अवैध खनन में खनन विभाग, वन विभाग, राजस्व विभाग, श्रम विभाग, पुलिस विभाग, कुछ स्थानीय पत्रकार, जिला प्रशासन, विधायक, व सत्तारूढ़ सरकार भी दोषी है। लेकिन अभी तक कार्यवाही केवल स्थानीय लोगों पर ही हुई है व पुलिस एवं वनविभाग के कुछ निचले स्तर के अधिकारियों को निलंबित किया गया है। जबकि कार्यवाही यहां के खनन अधिकारी, डीएफओ, श्रम आयुक्त, राजस्व अधिकारियों, प्रदूषण अधिकारियों, ठेकेदारों के ऊपर होनी चाहिए व इनको भी एफआईआर में नामजद किया जाना चाहिए।
  • इन खदानों को चलाने में एक बड़ी भूमिका जेपी कम्पनी की है जिसके द्वारा यहां पर सभी विभागों को खरीदकर प्राकृतिक संपदा की अबाध लूट की जा रही है। इस कम्पनी के तमाम करार रद्द किए जाने चाहिए, कम्पनी के मालिकों पर हत्या, प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए डकैती के मामले दर्ज किए जाए।
  • जिन 16 लोगों के नाम प्राथमिकी दर्ज की गई है उनको अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है ओर वे खुलेआम घूम रहे हैं व पुलिस द्वारा कहा जा रहा है कि सब लोग फरार हैं इसलिए कोई गिरफ्तारी नहीं हो पा रही है।
  • इन खदानों में आए दिन मौतें होती रहती हैं जिसे स्थानीय पुलिस थानों एवं ठेकेदारों की सांठ गांठ से सौदेबाजी कर गरीब मजदूरों को कुछ मुआवजा देकर मामले को दबाया जाता रहा है लेकिन अभी तक प्राकृतिक संसाधनों की बेतहाशा लूट पर कोई भी उच्च स्तरीय जांच नहीं की     गई है।
  • सोनभद्र में हो रही पत्थर खदानों, कोयला खदानों के तहत रेलवे विभाग ने भी कई कड़े पत्र शासन को लिखे है जिसमें विभाग ने इन खदानों से रेलवे लाईनों पर किसी भी बड़ी दुर्घटना को होने के भी संकेत दिए हैं।
  • राजस्व विभाग, वन विभाग व खनन विभाग को मालूम ही नहीं कि किस विभाग की भूमि पर यह खनन हो रहा था इन विभागों द्वारा एक दूसरे पर दोषारोपण किया जा रहा है जबकि पुराने रिकार्डो को खंगाला जाए तो पता चल जाएगा कि यह सारी भूमि रिकार्डांे में वन विभाग के नाम दर्ज है।
  • इस संबध में मंच मांग करता है कि सोनभद्र के अवैध खनन पर सीबीआई जांच होनी चाहिए व इस अवैध खनन के संबध में जुड़े पिछले व मौजूदा सभी विभागों व अधिकारियों पर अपराधिक मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए।

इन खदानों में श्रम विभाग की भूमिका न के बराबर है श्रमिकों के  श्रम अधिकारों की पूरी तरह से अनदेखी हो रही है। यहां पर सभी मजदूर आदिवासी एवं दलित व गरीब तबकों से इन खदानों पर काम करने के लिए मजबूर होते हैं उनके लिए काम करने की जगह पर किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं है, न आपातकाल से निपटने के लिए उनको उपकरण दिए जाते हैं, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से न उनको कपड़े व मास्क दिए जाते हैं, उनसे निर्धारित अवधि से ज्यादा काम लिया जाता है, महिला मजदूरों के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है, बच्चों के लिए क्र्रश नहीं है, पानी पीने व किसी भी प्रकार की सुविधा इन मजदूरों को नहीं दी जाती। इनकी दिहाड़ी भी ठेकेदारों द्वारा हड़प ली जाती है और कड़ी मशक्कत के बाद भी मुश्किल से एक मजदूर दिन में केवल 100 रू ही कमा पाते हैं जो कि मनरेगा में मिल रही मजदूरी से भी कम है।

अगर गरीब आदिवासियों को उनके जंगल में वनाधिकार मिल जाते, लघुवनोपज पर वनविभाग का एकाधिकार समाप्त कर उनको मिल जाता, वनों में वनविभाग, पुलिस व ठेकेदारों का उत्पीड़न कम करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते, एवं मनरेगा के तहत पूरे वर्ष काम मिलता रहता तो यह मजदूर किसी भी कीमत पर इन खदानों में अपनी जान दाँव पर लगा कर कभी काम न करते। इस जनपद में आदिवासियों एवं दलितों के ऊपर लगभग 20 हजार मुकदमें केवल वनविभाग द्वारा किए गए हैं जिनमें 80 फीसदी महिलाएं हैं जिन्हें वनविभाग द्वारा माफिया घोषित किया हुआ है। लेकिन अवैध खनन एवं जंगलों के अवैध कटान पर वनविभाग द्वारा माफियाओं, अधिकारियों, कम्पनियों, ठेकेदारों, पुलिस विभाग आदि पर किसी भी प्रकार के मुकदमें दर्ज नहीं किए जाते और न ही इतनी बड़ी लूट करने के लिए अभी तक कोई जेल में गया है।

इस सम्बन्ध में कई जांचों को अलग अलग विभिन्न स्तर पर किए जाने की आवश्कता है जिसमें एक उच्च स्तरीय जांच पर्यावरण मंत्रालय द्वारा की जानी चाहिए व यहां पर कराये जा रहे अवैध खनन के बारे में एक श्वेत पत्र जारी किया जाना चाहिए।

यहां के पर्यावरण के असली प्रहरी आदिवासियों को महज सस्ते मजदूर नहीं बल्कि उनको पर्यावरण बचाने की मुहिम में सिपाहियों की तरह सम्मानपूवर्क काम दिया जाए व उनके सराहनीय योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाए व तमाम ठेकेदारों, माफियाओं, भ्रष्ट अधिकारियों को सजा के तहत उन्हें जेल भेजा जाए।
(राष्ट्रीय वन जन श्रमजीवी मंच की जाँच दल की रिपोर्ट पर आधारित) दिनांक 3 मार्च 2012


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